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तपोमार्ग
नो पूयणं तवसा आवहेज्जा।
-सूत्रकृतांग १७।२७ तप के द्वारा पूजा-प्रतिष्ठा की अभिलापा नहीं करनी चाहिए।
मक्खं खु दीसइ तवो विसेसो, न दीसई जाइ विसेस कोई।
--उत्तराध्ययन १२१३७ तप (चरित्र) की विशेषता तो प्रत्यक्ष में दिखाई देती है। किन्तु
जाति की कोई विशेषता नजर नहीं आती। ३. तवो जोई जीवो जोइ ठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्मेहा संजमजोगसन्ती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं ।।
-उत्तराध्ययन १२।४४ तप ज्योति अर्थात् अग्नि है। जीव ज्योति-स्थान है । मन, वचन
और काया के योगन वा-आहुति देने की कड़छी है । शरीर कारीषांग—अग्नि प्रज्वलित करने का साधन है । कर्म जलाए जानेवाला इंधन है । संयमयोग शान्ति पाठ है । मैं इस प्रकार का यज्ञ-होम
करता हूं जिसे ऋषियों ने श्रेष्ठ बताया है। ४. भवकोडी-संचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ ।
-उत्तराध्ययन ३०१६