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जैनधर्म की हजार शिक्षाएं
जो ईर्यापथिक (गमनागमन) आदि क्रियाएं असंयत के लिए कर्म बन्ध का कारण होती हैं, वे ही यतनाशील के लिए मुक्ति का कारण बन जाती हैं। माराभिसंकी मरणा पमुच्चइ।
-- आचारांग १३३१ मृत्यु से सदा सतर्क रहनेवाला साधक ही उससे छुटकारा पा सकता है। अग्ई आउट्टे से मेहावी खणसि मुक्के ।
-आचारांग १।२।२ अरति (संयम के प्रति अरुचि) से मुक्त रहनेवाला साधक क्षण
भर में ही बन्धन मुक्त हो सकता है। २४. छंद निरोहेण उवेइ मोक्खं ।
-उत्तराध्ययन ४८ इच्छाओं को रोकने से ही मोक्ष प्राप्त होता है।