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मोक्ष-मार्ग
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निम्विकप्पसुहं सुहं।
-बृहत्कल्पभाष्य ५७१७ वस्तुतः राग-द्वेष के विकल्प से मुक्त निर्विकल्प सुख हो सुख है। १७. अउलं सुहसपत्ता उवमा जस्स नत्थि उ ।
-उत्तराध्ययन ३६।६६ मोक्ष में आत्मा अनन्त सुखमय रहता है। उस सुख की कोई
उपमा नही है । और न कोई गणना ही है। १८. ण वि अत्थि माणुसाणं, तं सोक्ख ण वि व सव्व देवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं, अव्वाबाहं उवगयाण ॥
-औपपातिक १८० संसार के सब मनुष्यों और सब देवताओं को भी वह सुख प्राप्त नहीं है, जो सुख अव्याबाध स्थिति को प्राप्त हुए मुक्त आत्माओं
को है। १९. केलियनाण लंभो, नन्नत्थ खए कसायाणं ।
___-आवश्यकनियुक्ति १०४ क्रोधादि कपायो को क्षय किए बिना केवलज्ञान (पूर्ण ज्ञान) की
प्राप्ति नहीं होती। २०. जे जत्तिआ अ हेउ भवस्स, ते चेव तत्तिआ मुक्खे ।
-ओघनियुक्ति ५३ जो और जितने हेतु संसार के है वे और उतने ही हेतु मोक्ष
२१. इरिआवहमाईआ, जे चेव हवंति कम्मबंधाय । अजयाणं ते चेव उ, जयाणं निवाणगमणाय ।
- ओपनियुक्ति ५४