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विविध शिक्षाएँ
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८.
ε.
१०.
११.
न सव्व सव्वत्थभिरोयएज्जा ।
- उत्तराध्ययन २१।१५
हर कहीं, हर किसी वस्तु में मन को मत लगा बैठिए ।
सीहे जहा खुड्डमिगा चरंता, दूरे चरंती परिसंकमाणा । एवं तु मेहावि समिक्ख धम्मं, दूरेण पावं परिवज्जएज्जा ।।
- सूत्रकृतांग १।१०।२०
जिस प्रकार मृगशावक ( हरिण ) सिंह से डरकर दूर-दूर रहते हैं, उसी प्रकार बुद्धिमान धर्म को जानकर पाप मे दूर-दूर रहें ।
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नया वि मरण पावएणं पावगं किंचि वि झायव्वं । वईए पावियाए पावगं न किंचिवि भासियव्वं ॥
- प्रश्नव्याकरण २।१
मन से कभी भी बुरा नहीं सोचना चाहिए । वचन से कभी भी बुरा नही बोलना चाहिए ।
सेयं तं समायरे ।
— दशवैकालिक ४|११
जो श्रेय ( हितकर ) हो, उमी का आचरण करना चाहिए । कुसीलवड्ढणं ठाणं, दूरओ परिवज्जए ।
- दशवेकालिक ६ ५६
कुशील (अनाचार) बढानेवाले प्रसंगों से साधक को हमेशा दूर रहना चाहिए ।
बलं थाम च पेहाए सद्धामारुग्गमप्पणो । खेत्तं कालं च विन्नाय, तहप्पाण निजु जए ॥
- दशवंकालिक ८।३५