________________
१२७
सोते हुए का श्रुत= ज्ञान सुप्त रहता है, प्रमत्त रहनेवाले का ज्ञान शंकित एवं स्खलित हो जाता है। जो अप्रमत्त भाव से जाग्रत रहता है, उसका ज्ञान सदा स्थिर एव परिचित रहता है, अर्थात्
अप्रमत्त की प्रज्ञा सदा जाग्रत रहती है। २७. सुवइ य अजगरभूतो, सुय पि से णासती अमयभूयं । होहिति गोणब्भूयो, णमि सुए अमयभूये ।।
- नशीयभाष्य ५३०५ जो अजगर के समान सोया रहता है, उसका अमृतस्वरूप श्रुत (ज्ञान) नष्ट हो जाता है, और अमृतस्वरूप श्रुत के नष्ट हो
जाने पर व्यक्ति एक तरह से निरा बैल ही हो जाता है । २८. जागरिया धम्मीणं आहम्मीणं च सुत्तया सेया।
-निशीथभाष्य ५३०६ धार्मिक व्यक्तियो का जागते रहना अच्छा है आर अधार्मिक जनो का सोते रहना। णालम्सेण समं सोक्ख, ण विज्जा सह णिया । ण वरग्गं ममत्तेणं णारंभेण दयालुआ।
-निशीथभाप्य ५३०७ आलस्य के साथ मुख का, निद्रा के माथ विद्या का, ममत्व के साथ वैराग्य का, और आरम्भ-हिमा के साथ दयालुता का कोई मेल नही है। इणमेव खणं वियाणिया।
-सूत्रकृतांग ११२।३।१६ जो क्षण वर्तमान मे उपस्थित है, वही महत्वपूर्ण है, अत. उसे सफल बनाना चाहिए।
२६.
"