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________________ श्रावक शब्द की निम्न व्युत्पत्ति की गई हैभा-वह तत्त्वार्थचिन्तन द्वारा श्रद्धालुता को सुदृढ़ करता है। 4-निरन्तर सत्पात्रों में धनरूप बीज बोता है। क-शुद्धसाधु की सेवा करके पापधूलि को दूर फेंकता रहता है । उसे उत्तमपुरुषो ने श्रावक कहा है। उपासन्ते सेवन्ते साधून्, इति उपासकाः श्रावकाः । - उत्तराध्ययन २ टीका साधुओ की उपासना-सेवा करते है अत: श्रावक उपासक कहलाते है। श्रमणानुपास्ते इति श्रमणोपासकः । -उपासकदशा १ टीका श्रमणों-साधुओं की उपासना करने के कारण श्रावक श्रमणोपासक कहलाते है। जो बहुमुल्लं वत्यु, अप्पमुल्लेण णेव गिण्हेदि । वीसग्यिं पि न गिण्हदि, लाभे थूएहि तूसेदि । -कार्तिकेय० ३३५ वही मद्गृहस्थ श्रावक कहलाने का अधिकारी है, जो किसी की बहुमूल्य वस्तु को अल्पमूल्य देकर नही ले, किसी की भूली हुई वस्तु को ग्रहण नही करे और थोडा लाभ प्राप्त करके ही सन्तुष्ट रहे। ८. धम्मेण चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरति । -सूत्रकृतांग २।२।३६ सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं ।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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