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जैनधर्म की हजार शिक्षाएं
१७. जो उवसमइ तस्स अत्यि आराहणा, जो न उवसमइ तस्स पत्थि आराहणा।
-वृहत्कल्प १२३५ जो कषाय को शान्त करता है, वही आराधक है। जो कषाय को
शान्त नहीं करता उसकी आराधना नहीं होती। १८. आगमबलिया समणा निग्गंथा।
__ -व्यवहारसूत्र १० श्रमण निम्रन्थों का बल 'आगम' (शास्त्र। ही है।