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________________ माहार-क्वेिक १०१ ४. बुभुक्षाकालो भाजनकालः। -नीतिवाक्यामृत २५५२९ भूख लगे, वही भोजन का समय है। ५. यो मितं भुङ्क्त, स बहुभुङ्क्त । -नीतिवाक्यामृत २५॥३० जो परिमित खाता है, वह बहुत खाता है । - ६. तथा भुजोतः ! यथा सायमन्येद्य श्च न विपद्यते वन्हिः । -नोतिवाक्यामृत २५४२ वैसे खाना चाहिए, जिससे संध्या या सबेरे जठराग्नि न बुझे । ७. अतिमात्रभोजो देहमग्नि विधुरयति । -नीतिवाक्यामृत १६।१२ मात्रा से अधिक खानेवाला जठराग्नि को खराब करता है । मोक्खपसाहणहेतू, णाणादि तप्पसाहणो देहो । देहट्ठा आहारो, तेण तु कालो अणुण्णातो ।। -निशीथभाष्य ४१५४ ज्ञानादि मोक्ष के साधन है, और ज्ञान आदि का साधन देह है, देह का साधन आहार है । अतः साधक को समयानुकूल आहार की आज्ञा दी गई है। अप्पाहारस्स न इंदियाई विसएसु संपत्तंति । नेव किलम्मइ तवसा, रसिएसु न सज्जए यावि ॥ -बृहत्कल्पभाष्य १३३१ जो अल्पाहारी होता है, उसकी इन्द्रियां विषय-भोग की ओर नहीं दौड़तीं । तप का प्रसंग आने पर भी वह क्लांत नहीं होता और न ही सरस भोजन में आसक्त होता है। ८.
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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