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वचनों से समृद्ध है। इस दिशा में मैंने एक चरण आगे बढ़ाया है - आगमों से लेकर अधुनाकाल तक के, इस ढाई हजार वर्ष के प्राकृत-अपभ्रंश एवं संस्कृत वाङमय में बिखरे हुए उपदेश प्रधान शिक्षा वचनों का एक संकलन-जैनधर्म की हजार शिक्षाएं के रूप में ! संकलन करते समय लगभग १५०० मूक्तियां संकलित हो गई थी, लेकिन चूंकि मैंने हजार शिक्षाएं ही इसमे संकलित करने का निश्चय किया, अतः उनमें में पुनः छटनी की और जोजो वचन, शिक्षाएं मुझ अधिक हृदयस्पर्शी व विचार-समृद्ध लगे उन्हें प्राथमिकता दी। शिक्षाओं का सकलन इतना कठिन नहीं था जितना कठिन लगा—उनका विपयानुक्रम से वर्गीकरण । एक ही पद्य अनेक विषयों से सम्बद्ध दीखता है, असमंजस खड़ा होता है उसे इस विषय में रखें या उस विषय में । पढते समय आलोचकों को भी शायद ऐसा विकल्प उठे कि यह अमुक विपय में जाना चाहिए, पर उसका भाव पूर्व प्रकरण के किसी अन्य विषय को स्पष्ट करता है--ऐसी स्थिति में शिक्षाओं का विषयान्तर कर पाना बड़ा कठिन होता है । पूर्ण सावधानी बरतते हुए भी संभवत. एक-आध सूक्ति कही दुबारा भी आगई हो और वह ध्यान में न आ सकी हो । प्रायः मूक्तियों में ग्रंथों का स्थल निर्देश भी करने का प्रयत्न किया है कुछ सुभापित नथ से नहीं, ग्रंथकर्ता के नाम से ही प्रसिद्ध है, ग्रंथ का कुछ संदर्भ मेरे ध्यान में नहीं आया-उन्हें ग्रंथकार आचार्य के नाम से ही उद्धृत कर दिया गया है । ग्रंथ व ग्रंथकारों के विपय में कुछ ऐतिहासिक जानकारी परिशिष्ट में दे दी है।
इस संकलन में विशेप ध्यान रखा गया है कि पाठक को जैन सुभापितों से परिचय कराने की बजाय जैन धर्म की शिक्षाओं से अनुप्रीणित किया जाय । जीवन की बहुविध परिस्थितियों को स्पर्श करनेवाली और कुछ स्पष्ट मार्गदर्शन करनेवाली शिक्षाओं