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सेवाधर्म
५. गिलाणस्स अगिलाए वेयावच्चकरणयाए अन्भुट्ट्यव्वं भवइ ।
-स्थानांग रोगी की सेवा करने के लिए सदा अग्लानभाव से तैयार रहना
चाहिए। ६. समाहिकारए णं तमेव समाहि पडिलन्भई ।
-भगवतीसूत्र ७१ जो दूसरों के सुख एवं कल्याण का प्रयत्न करता है वह स्वयं भी
सुख एवं कल्याण को प्राप्त होता है। ७. जो करेइ सो पसंसिज्जइ।
-आवश्यकचूर्णि, पृष्ठ १।३२ जो सेवा करता है, वह प्रशंसा पाता है । ____कार्यकृद् गृह्यको जनः ।
-त्रिषष्ठिशलाका० १११।६०८ जो कार्य (सेवा) करता है, लोक उसे पूजते ही है।