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८.
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१०,
जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ
सुमणे अहियासेज्जा. न य कोलाहलं करे ।
- सूत्रकृतांग १/६/३१ साधक जो भी कष्ट आये, वे प्रसन्नमन से सहन करें । कोलाहल अर्थात चीख-चिल्लाहट न करें ।
अज्जेवाहं न लब्भामो, अवि लाभे जो एवं पडिसं चिक्खे, अलाभो तं न
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सुए सिया । तज्जए ।
"आज नहीं मिला तो क्या है कल मिल जायगा - जो यह विचार कर लेता है, वह कभी अलाभ के कारण पीड़ित नहीं होता ।
अलद्धयं नो परिदेवइज्जा,
- उत्तराध्ययन २।३१
सहिओ दुक्खमत्ताए पुट्ठो नो भंझाए ।
सत्य की साधना करनेवाला साधक सब ओर दुःखों से घिरा रह कर भी घबराता नहीं है, विचलित नहीं होता है ।
लाभुत्ति न मज्जिज्जा । अलाभुत्ति न सोइज्जा ।
- आचारांग १।३।३
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धुं न विकत्थई स पुज्जो ।
जो लाभ न होने पर खिन्न नहीं होता है, अपनी बड़ाई नहीं हांकता है, वही पूज्य है ।
- दशवेकालिक है।३।४
और लाभ होने पर
- आचारांग ११२५
मिलने पर गर्व न करे ! न मिलने पर शोक न करे ! यही साधक का परम ( तितिक्षा) धर्म है ।