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________________ अपनी बात! कुछ वर्ष पूर्व एक समाचार पढ़ा था कि फारस के शाह ने अमीर अफगानिस्तान को 'कुरान-शरीफ' की एक प्रति भेंट की है जिसका मूल्य है ३ हजार पौण्ड। वह सोने के पत्रों में लिखी हुई है. उसमें ३९८ रत्न जवाहरात जड़े हुए हैं—अर्थात् १६८ मोती, १३२ लाले और १०८ हीरें। वह संसार की सबसे मूल्यवान (कीमती) पुस्तक कही जाती है। मेरे मन में आया-- भौतिकवादी युग में अब मनुष्य धर्म और ज्ञान को भी भौतिक-समृद्धि से जीतने का प्रयत्न करने लग गया है। महापुरुषों के उपदेश को भी वह हीरों पन्नों से तोल रहा है और जिसमें ज्यादा हीरे लगें, उस पुस्तक को, साहित्य को संसार कीमती कहने लगा है। साहित्य का, उपदेशवचन का, हित-शिक्षा का मूल्य हीरों से तोलना सचमुच में एक मूर्खता है। एक खतरनाक प्रयत्न है। भौतिक वस्तु का कुछ मूल्य होता है, किंतु महापुरुष के सत्वचन तो अमूल्य होते हैं । एक ही वचन जीवन का, संपूर्ण मानवता का, समस्त विश्व का कल्याण कर सकता है। अणु को महान् बना सकता है, पतित को पावन कर सकता है, और क्या एक ही शिक्षा पर आचरण कर इन्सान भगवान बन सकता है, क्या विश्व के महामूल्यवान किसी भी हीरे-पने में है यह क्षमता?
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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