________________
माया
___जगत को ठगते हुए कपटीपुरुष वास्तव में अपने आप को ही
ठगते हैं। १२. व्यसनशतसहायां दूरतो मुच मायाम् ।
-सिन्दूरप्रकरण ५६ सैकड़ों दुःख देनेवाली माया को दूर से ही छोड़ दो। काष्ठपात्र्यामकदेव पदार्थोरध्यते ।
-नीतिवाक्यामृत ८।२२ काठ की हांडी में एक बार ही पदार्थ पकाया जा सकता है, दूसरी बार नहीं, वैसे ही माया-कपट से एक बार ही आदमी अपना काम निकाल सकता है, दूसरी बार कोई उसके कपट जाल में नहीं फंसता।