________________
६२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
साधक स्थूलभद्र से सम्यक् सबोधि प्राप्त गणिका कोशा स्वय मे पूर्ण सजग एव सावधान थी । वह राजा के आदेश के अतिरिक्त किसी भी पुरुष से काम सम्बन्ध जोडने का परित्याग कर चुकी थी। मुनि को प्रशिक्षण देने की दृष्टि से उसने कहा - " मुने । मैं गणिका हू । गणिका उसी की होती है जो प्रचुर मात्रा मे द्रव्य दान कर सकता है | आपके पास मुझे समर्पित करने के लिए क्या है ?"
मुनि ने कातर नयनो से गणिका की ओर झाकते हुए कहा - " मृगलोचने । वालुको से कभी तेल नही निकलता । हमारे जैसे अकिंचन व्यक्तियो से धन की आशा रखना व्यर्थ है । तुम प्रसन्न बनो और मेरी कामना पूर्ण करो ।" विवेकसम्पन्न कोशा बोली - "मुने । नेपाल देश का राजा प्रथम समागत मुनिजनो को रत्नकम्बल प्रदान करता है । वह कम्बल मेरे सामने प्रस्तुत कर सको तो इस विषय मे कुछ सोचा जा सकता है ।""
I
कामासक्त व्यक्ति हिताहित का सम्यक् समालोचन नही कर सकता । मुनि भी अपनी सयम मर्यादा को भूल चातुर्मासिक काल मे ही वहा से चल पडे । सैकडो कोश धरती पार कर नेपाल पहुचे और अत्यन्त कठिनता से रत्नकम्बल को प्राप्त कर लौटे। रास्ते मे भीषण आपत्तियो का सामना भी उन्हें करना पडा । कभी तीव्र ताप से तापित धरती की तपन पैरो को झुलसाती, कभी सर्दी की ठिठु
शरीर को कपकपा देती थी । भूख-प्यास से आकुल मुनि के लडखडाते चरण, विशालकाय पहाडो की ककरीली दरारो, वरमाती हवाओ से सर्पिणी की भाति फुफकारती विफरी नदियो एव बीहड वनो को लाघते आगे बढते रहे । मार्ग मे चोरो का आवासस्थल था । उसके पास पहुचते ही शकुनसूचक पक्षी बोला"आयाति लक्षम्" " -- लक्ष मुद्राओ का द्रव्य आ रहा है । पक्षी की भाषा को समझकर चोर सेनापति ने द्रुमारूढ चोर से पूछा - "मार्ग पर कोई आता हुआ दिखाई रहा है?"
"आगच्छन् भिक्षुरेकोऽस्ति न कश्चित्तादृशोऽपर ।"
चोर ने कहा-"एक भिक्षु के अतिरिक्त कोई दृष्टिगोचर नही हो रहा है ।" चोर-सम्राट् ने आदेश दिया - " निकट आने पर आगन्तुक को लूट लिया जाए ।" चोरो ने वैसा ही किया पर भिक्षु के पास कुछ भी प्राप्त नही हुआ । स्तनदल से मुक्ति पाकर ज्योही मुनि के चरण आगे बढे पक्षी पुन बोला"एतल्लक्ष प्रयाति"
पक्षी से सकेत पाकर स्तेनराट् सहित चोरो ने उसे घेर लिया और कहा"सत्य ब्रूहि किमस्ति ते "
- भिक्षुक | सत्य कहो, तुम्हारे पास क्या है ?
मुनि का हृदय काप गया । वे बोले – “मेरी इस प्रलम्बमान वश यष्टि मे रत्न कम्बल निहित है । मगध गणिका को प्रसन्न करने के लिए इसे नेपाल सम्राट्