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सगम-पूर्ण मानापं सम्भूतयिगय ६१ भारत भाव से सामान उन श्रमणो लगभग बाठ महीन करतीत हुए। मिह-गुफावामी मुनि ने नानाय नमूनायगय को पाग भाग माना की"गुग्दे गगामी गातुर्मान गणिका भोगा' मी जिवनात्रा में ना चाहता
लावाय गम्भूतविजय गांगण में यानी पटनामा भावी पतिविम्य जनप रहा था। उन्होंने कहा--"गम IT महान् दु निया का महा मन की गिनती तर हि स्पनमा जंगा पगिकी मप्रका अभिग्रह कोनिभागरता है।"
मुनि बोने-"मेरे लिए या अभिर दुपार न पाप जिम पुनर. दुप्फर पहने है वाह मार्ग मेरे लिए बहन भागान है।" ___ आर्य गम्भूनविजय ने मधुर स्वर्ग में पुन प्रशिक्षण देत एकहा-"इन अभिग्रह में तुम सपन नही बन गयोग । गुमाग पूयं तपोजोग भी नष्ट हो गये।। दुर्बल माधो पर गोपिन तिमार गाव-गमा निमित्त बनता है।" बायं माभूतविजय इतना माफर मौन तो गए। पंक्ति नागदशिन मिह-गुपावागी मुनि गुर पा वचनो पो अपगणित गर गणिका मोनाको चित्रगाना की और पट गए। अधिग्न गति में गमत परण मजिन मनिपाट पहुचे बोर चित्रमाला में पायम विज्ञान के लिए मांगा गणिमा ने नादेश मागा।
फोमा बुद्धिमती महिला थी। उनने गमाा निगा, तपम्बी मुनि का आगमा मुनि न्यूनभद्र को स्पर्धा के फाण दुमा है। यह यामागुगन भी थी। उगने उठकर बदन पिया और अपनी चिनगाला चातुर्मा मा लिए उ गपित पार दी।
मिह-गुफायानी मुनि म्यय पो जिनेन्द्रियता जिग उच्चतम बिन्दु पर मान न्हे ये उगनं पधार्य में यह दूर येनार्य पूनम जैसा र मनोवल उमगे पाग नी था। पट्रमपूर्ण भोजन की परिणनि नागना मा सीम्र ज्यार नकर उभरी। पामननयनी गणिका योगा पं. अनुप रप पर गुनि का गान एगही दिन में विक्षिप्त हो गया। धमोपदेश के स्थान पर मुनि ने मोगा के मगध याग-प्रार्थना प्रस्तुत पी। माथि ने ठीक ही पहा है--"अर्यातुराणा न गुग्नं याधु, गामातुराणा न भयं न नज्जा।" अर्थातुर व्यपिा के लिए न सोई गुरन जोई वन्धु, फामान व्यक्ति के लिए न भय,गलज्जा।
वतियनज्जो मननीयवनउपस्थिउ तय लगी। निउणमईए नीष, मणिओ नि देगि में यहम् IIll
(उप० विशेष वृत्ति, पृ० २३८) मिह गुफावामी मुनि को काम-प्रार्थना करते समय न लज्जा की अनुभूति हुई न अपयश का भय ही लगा।