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________________ युग-प्रहरी आचार्य यशोभद्र ५६ यशोभद्र ने अपने वाद सम्भूतविजय और भद्रबाहु -- इन दोनो की आचार्य पद पर नियुक्ति कर जैन शासन में नई परम्परा को जन्म दिया । " भगवान् महावीर के उत्तरवर्ती युग-प्रधान आचार्यों की परम्परा में आचार्य यशोभद्र का क्रम पाचवा है । सयम पर्याय के कुल ६४ वर्ष के काल मे ५० वर्ष तक उन्होने युग-प्रधान पद को अलकृत किया । आचार्य यशोभद्र का लम्बा शासनकाल भी अत्यन्त सुखद और शान्तिमय बना रहा। उसमे विशेषत उतार-चढाव नही आए, यह उनके सक्षम व्यक्तित्व का परिणाम था। उनका स्वर्गवास वी० नि० १४८ ( वि० पू० ३२२ ) मे ८६ वर्ष की अवस्था मे हुला ।' आधार-स्थल १ मेधाविनो भद्रवाहसम्भूतविज्यो मुनी । चतुर्दशपूर्वधरी तस्य शिष्यो बभूवतु ॥ ३ ॥ २ सूरिश्रीमान्यशोभद्र श्रुतनिध्योस्तयोद्व यो । स्वमाचायकमारोप्य परलोकमनाधयत् ॥४॥ परिशिष्ट पर्व, राग ६ परिशिष्ट पर्य, गर्ग ६ वर्षाणिगृहे १४ वर्षाणि व्रते ५० वर्षाणि श्रीवीरात् १४८ वर्षाते स्वयंयो । पट्टावली समुच्चय, श्री गुरु पट्टावली, पृ० १६४ ३ तत्पट्टे श्री यशोभद्रस्वामी । स च २२ युगप्रधानत्वे सर्वायू पडणीति ८६ वर्षाणि प्रपात्य
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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