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५. युग-प्रहरी आचार्य यशोभद्र
आचार्य यशोभद्र जैन-सघ के परम यशस्वी आचार्य थे। गुणज्ञ, मागमज्ञ, समयज्ञ, श्रुत-शार्दूल आचार्य शय्यभव के उत्तराधिकारी थे। उनका जन्म ब्राह्मण परिवार मे वी० नि० ६२ (वि० पू० ४०८) मे हुआ । तुगीकायन उनका गोत्र
था।
उम्र के लगभग दो दशक उनके गृहस्थ जीवन मे बीते। तृतीय दशक का प्रारम्भिक चरण था। सासारिक भोग उन्हे नीरस लगने लगे। मन सयम की की ओर झुका । विरक्ति की धारा प्रवल हो उठी। ___ अध्यात्म सस्कारो से प्रभावित होकर २२ वर्ष की युवावस्था मे उन्होने आचार्य शय्यभव के पास दीक्षा ग्रहण की। श्रुतमम्पन्न आचार्य शय्यभव का पावन सान्निध्य आचार्य यशोभद्र के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुआ। वे १४ वर्ष तक उनके पास रहे। सयम साधनोपयोगी विभिन्न योग्यतामो का अर्जन करने के साथ १४ पूर्वो की विशाल ज्ञान-राशि का ग्रहण भी आचार्य यगोभद्र ने उनसे किया।
श्रुतकेवली की परम्परा मे आचार्य यशोभद्र का क्रम तृतीय है। आचार्य शय्यभव के बाद वे वी०नि० ६८ (वि० पू० ३७२) मे आचार्य पद पर आरूढ हुए। उन्होने कुशलतापूर्वक वीर शासन का दायित्व सम्भाला। आचार्य पदारोहण के समय उनकी अवस्था ३६ वर्ष की थी।
चर्तुदश पूर्वो की सुविशाल ज्ञान-राशि से सम्पन्न यशस्वी आचार्य यशोभद्र यथार्थत अध्यात्म युग के सजग प्रहरी थे।
जलधर की भाति अर्हतोपदिष्टि धर्मधारा के द्वारातापतप्त विश्व को शाति प्रदान करते हुए आर्यधरा पर उन्होने सिंह तुल्य निर्भीक वृत्ति से विहरण किया। उनकी कीर्तिलता चतुर्दिक में विस्तृत हुई। ____ सयम शैल आचार्य सम्भूतविजय और जैन मुकुटमणि आचार्य मद्रवाहु दोनो मेधावी मुनि आचार्य यशोभद्र के शिष्य थे। दोनो ही श्रमण आचार्य यशोभद्र से १४ पूर्व की पूर्ण ज्ञान सम्पदा को ग्रहण करने में समर्थ सिद्ध हुए।
आचार्य शय्यभव तक एक आचार्य की परम्परा थी। युग-प्रहरी आचार्य