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४८ जैन धर्म के प्रभाव आचार्य
अत्यन्त त्वग से अपना काम किया, धन मी गाठे बाधी । गाठों को उठाने में तत्पर उनके हाथ गाठो पर चिपप गए औरर धरती मे। म मब भित्तिचित्र की तरह स्तभित रह गए। प्रभव दूर ग्रहा अपने माथियो को चलने का आदेश दे रहा था। पर ये मय प्रस्तर मूर्ति की तरह अविचल ग्रह थे। अपनी गारीरिक माक्ति का पूग उपयोग पार लेने पर भी किमीका पैर इञ्च-माव नहीं हिना । वे उध्वंकणं होकर अभात दिशा में आती हुई शब्द-तरगों को मुन रहे थे तया विस्फारित नयनी से नेता को और माफ रहे थे।
पयन फी लहरों पर आमनु गाद-तरगें प्रभव के कानी तक भी पहुची। प्रभव गुशायबुद्धि का स्वामी पााम्पिनि को समझते उसे देर न लगी। मेरे मकेत मात्र पर बलिदान होने वाला मेरा दल मेरी आज्ञा की अवहेलना नहीं कर मकता। यहा अयश्य कोई दूसरा रहस्य है। मेरे कानो मे टकराने वाली शब्द-तरगो का प्रयोक्ता इमी भवन में कही बैठा है । वह मेरे मे भी अधिक शक्तिशाली है। मेरी अवस्वापिनी विद्या उसके मामने असफल हो गयी है । उसी ने अवश्य मेरे स्तनदल पर स्तम्भिनी विद्या का प्रयोग किया है। प्रभव की दृष्टिक्षण-भर में चारो और घम गई। उसने ऊपर की ओर साका। ऋपभदत्त के मवमे उपरीतन प्रामाद में दीपमालाए जल रही थी। उमीप्रामाद के जालीदार गवाक्ष से छन-छनकर आती हुई प्रकाश-किरणे प्रभव को जम्बू के शयनकक्ष तक खींचकर ले गयी। उमने द्वार पर लगे कपाटो की लम्बी मुराख में से चुगलखोर की तरह चुपके से झाफा। मृगनयनियो की कुतलालकृत रूपछटा उसकी आखो मे धनी घटाओ मे चमकी विद्युत् की तरह पौध गई। जम्बू का कातिमान् भाल उसे अत्यधिक प्रभावित कर गया। नवोढाओ का मधुर सवाद सुनने के लिए स्तेन-सम्राट् ने अपने कान दीवार पर लगा दिए । मुहाग की इस प्रथम रात में पति-पलियो के मध्य अध्यात्म की चर्चा चल रही थी। विरक्ति के स्वर उसके कानो से टकराए। प्रभव ने सोचा-यह कोई असाधारण पुरुष है । वह जम्बू के सामने जाकर खडा हुआ और अपना परिचय देते हुए वह वोला, "मैं चोराधिपति प्रभव है। आपके मामने मंत्री स्थापित करने की उदग्र भावना के साथ प्रस्तुत हुआ हू । अवस्वापिनी
और तालोद्घाटिनी विद्याए आपको अर्पित कर रहा हूं। मुझे अपना मित्र मानकर मेरी इन विद्याओ को ग्रहण करे और मुझे स्तम्भिनी और विमोचिनी विद्या प्रदान
मेघघटा मे चमकती दामिनी की भाति जम्बू मुस्कराया और बोला, "स्तेन मम्राट् | मेरे पाम किसी प्रकार की भौतिक विद्या नहीं है और मैं तुम्हारी इन विद्याओ को लेकर क्या करू ? प्रभात होते ही मणि, रत्न, कनक-कुण्डल, किरीट-प्रमुख समग्र सम्पदा तथा रूप-सम्पदा की स्वामिनी इन कामनियो का परित्याग कर सुधर्मा स्वामी के पाम सयम पर्याय को ग्रहण करूगा। मेरी दृष्टि