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४४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य झुका। उसने विवाह के लिए स्वीकृति दी। यह स्वीकृति रीति-निर्वहन मात्र थी। ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा मे वह अब भी मन्दराचल की तरह अचल था।
जम्बू के दृढ सकल्प की बात कन्याओ के अभिभावको को भी बता दी गई। इस सूचना से वे चिन्तित हुए। उनमे परस्पर विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ। व्यामोह के कारण वे किसी एक निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे। यह चर्चा कन्याओ के कानो तक भी पहुची। उन्होने दृढ स्वर से अपने अभिभावको से कहा-"हमे आप जम्बू को दे चुके है। अब हमारा वर दूसरा नहीं हो सकता। राजा और सत पुरुपो का दान भी एक बार ही किया जाता है। हमारे प्राण अब श्रेष्ठीकुमार जम्बू के हाथ में है।"
कन्याओ का निश्चय सुनकर अभिभावको के विचार भी स्थिर हुए। सवने यही सोचा-माता-पिता के स्नेहिल आग्रह ने पुत्र को विवाह हेतु प्रस्तुत कर लिया तो ललनाओ का आग्रह-भरा अनुनय भी जम्ब के सयमार्थ वढते चरणो को अवश्य रोक लेगा। नैमित्तिक को पूछकर उम दिन से सातवे दिन विवाह लग्न निश्चित हुआ। ऋपभदत्त के मानस मे हर्ष की लहर पुन दौड गई। धारिणी के पैरो मे घूधरुवध गए। स्वजन-स्नेही, कुटुम्बजन उत्सव की तैयारी मे लगे। सारा वातावरण ही उल्लास से भर गया। आनन्द-प्रदायिनी मगल वेला मे धूम-धाम से जम्बू का विवाह संस्कार सम्पन्न हुआ। यथा नाम तथा गुण वाली समुद्रश्री, पद्मश्री, पद्मसेना, कनकसेना, नभसेना, कनक्श्री, रूपथी और जयश्री इन आठो रूपवती कन्याओ के साथ जम्बू ने घर मे प्रवेश किया। ऋषभदत्त का आगन जम्बू के दहेज से प्राप्त निन्यानवे करोड की धन-राशि से शीशमहल की तरह चमक उठा था।
अपने माता-पिता की प्रसन्नता हेतु जम्बू ने विवाह किया था। उत्सव के इस प्रसग पर विविध वाद्यो की मनमोहक झकार, कोकिल-कठो से उठते सगीत एव -गुलावी रग मे उछलती खुशिया विरक्त जम्बू को अपने लक्ष्य से विचलित न कर सकी।
रात्रि के नीरव वातावरण मे समार नीद की गोद मे सोया था, पर ऋषभदत्त -के घर भारी हलचल थी। धन का अपहरण करने के लिए समागत प्रभव आदि चोर अपने चौर्य कर्म में व्यस्त थे एव तत्परता से ऋषभदत्त के प्रागण मे दीवारो और छतो पर इतस्तत: फलो से लदे वृक्ष पर मदोन्मत्त मर्कट की भाति छलाग भर रहे थे। ऋपभदत्त के उपरीतन प्रासाद मे अप्सरा-सी आठो पत्नियो के बीच बैठा जम्बू राग-भरी रजनी में त्याग और विराग की चर्चा कर रहा था। -समुद्रश्री आदि आठो कन्याओ ने कर्षक, नुपूर-पण्डिता, वानर-मिथुन,शख-धमक, सिद्धि-बुद्धि, ग्रामकूट-सूत, मासाहस शकुनि, विप्र-दुहित नागश्री क्रमश ये आठ कथाए जम्बू को ससार मे मुग्ध होने हेतु कही। जम्बू ने भी काक, विद्युन्माली,