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२४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
अभ्युदय के साथ ही इतर पक्ष दिगम्बर 'वीमपथी' कहलाया। दिगम्बर परम्परा की यह क्रान्ति 'क्रान्ति युग' का प्रथम चरण या। क्रान्ति का द्वितीय चरण
श्वेताम्बर सम्प्रदाय मे भी इस समय महान् क्रान्तिकारी लोकाशाह पंदा हुए । लोकाशाह का युग एक ऐसा युग था जिसमे श्वेताम्बरधर्मगच्छो के सचालन का दायित्व यतिवर्ग के हाथ मे था। यति चत्यो मे निवास करते थे। उनके सामने साधुत्व का भाव गौण और लोकरञ्जन का भाव प्रमुख था। परिग्रह को पापमूलक बताने वाले स्वय धन-सम्पदा का निरकुश भोग करने लगे। नाना प्रकार की सुविधाए उनके जीवन मे प्रवेश पा चुकी थी। इन सबके विरुद्ध मे लोकाशाह की धर्म क्रान्ति का स्वर गुजरात की धरा से गूज उठा। __लोकाशाह गुजरात के थे। उनके पिता का नाम हेमाभाई था। मूलत वे सिरोही राज्य के अन्तर्गत अरहटवाडा ग्राम के निवासी थे और अहमदाबाद मे आकर रहने लगे थे । यति वर्ग का अहमदाबाद मे प्रवल प्रभुत्व था।
लोकाशाह मे बचपन से ही सहज धार्मिक रुचि थी एव उनकी लिपि कला'पूर्ण थी। वे मोती-मे गोल व सुन्दर अक्षर लिखते थे। यतियो ने आगम लिखने का कार्य उन्हे सौपा। लोकाशाह लिपिकार ही नहीं थे वे गभीर चिन्तक, सूक्ष्म अध्येता एव समुचित समीक्षक भी थे। आगम लेखन मे रत लोकाशाह ने एक दिन अनुभव किया-आगम-प्रतिपादित सिद्धान्त और साध्वाचार के मध्य भेदरेखा उत्पन्न हो गई है। ___ लोकाशाह ने कई दिनो तक चिन्तन-मनन किया और एक दिन उन्होने निर्भीकतापूर्वक क्रान्ति का उदघोष कर दिया। सैकडो लोगो को लोकाशाह की नीति ने आकृष्ट किया। कोट्याधीश लक्समसी भाई ने गहराई से समझा और वे लोकाशाह के मत का प्रवल समर्थन करने लगे।
लक्खमसी भाई द्वारा शिष्यत्व स्वीकार कर लेना लोकाशाह की सफलता मे एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। ___ एक वार कई सघ तीर्थयात्रार्थ जा रहे थे। अधिक वर्षा के कारण उन्हें वहा रुकना पडा जहा लोकाशाह थे। लोकाशाह का प्रवचन सुनकर सैकडो व्यक्ति सुलभवोधि वने । पैतालीस व्यक्तियो ने लोकाशाह की श्रद्धा के अनुरूप वी० नि० २००१(वि० स० १५३१)मे श्रमण दीक्षा ली और उन्होने चैत्यो मे रहना छोडा।
इनका नवोदित गच्छ लोकागच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। लोकाशाह द्वारा श्रमण दीक्षा ग्रहण करने का कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं होता।
लोकागच्छ का विकास शीघ्र गति से प्रारम्भ हुआ। इस गच्छ की एक शती पूर्ण होने से पूर्व ही सैकडो व्यक्तियो ने लोकाशाह की नीति के अनुरूप निग्रंन्य