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युगप्रधान आचार्य श्री तुलमी ३६६
नोलह वर्ष की लघु वय मे ही वे विद्यार्थी मुनियो के शिक्षाकेन्द्र का गफलतापूर्वक नचालन करने लगे थे। उनके आत्मीयतापूर्ण नेतृत्व से विद्यार्थी बालमुनियो को अन्न नोप प्राप्त हुआ। यह उनकी अनुमानन-गुशलता का सजीव निदर्शन था।
सयमी जीवन की निर्मल माधना, विनय-विवार का जागरण, सूक्ष्म ज्ञानणक्ति का विकान, महनशीलता, धीरता आदि विविध विशेषताओ की अभिव्यक्ति के कारण वाईन वर्ष की अवन्या में सन्त तुलनी के कोमल पिन्तु गुदृढ कन्धो पर महामनीपी नाचार्य कालगणी ने वी० नि० २४५३ (वि० स० १९६३) को गगापुर में आचार्य पद का गुरना दायित्व स्थापित किया।
तंगपथ में मर्यादित संगठन को गुवप नाधक का नेतृत्व मिला। यह जैन मध के इतिहास को विरल घटना थी, पर अवस्था एव योग्यता का कोई अनुवन्ध नहीं होता। __ तरुण का-सा जसाह, नम पो निमाला, हन-मनीपा विवेक तिए युवक मन्न नेता ने अपना गायं नम्भाना। प्रतिक्षण जागरसता के साथ चरण आगे बढ़े। उद्बुद्ध विवेक हस्तम्भित दीपय मी भाति मार्गदर्शक बना। सवप्रयम तेगपथ के अन्तरग विधान के लिए उनमा ध्यान विप परी फेन्द्रित हुआ। प्रगतिशील मघ का प्रमुख जग शिक्षा है, श्रुतोपाना है। जाचार्य श्री तुलसी ने सर्वप्रथम प्रशिक्षण का कार्य अपने हाथ में लिया। माधु गमाज का विद्याविकाम पूज्य कालूगणी से प्रारम्भ हो चुवा या। आचाय मी तुामी की दीरदृष्टि साध्वी समाज पर पहुंची। यह विषय पूज्य कालूगणी के चिन्तन में भी था पर कुछ परिस्थितियो के कारण वह फनवान् नहीं हो सका। उसकी पूर्ति आचाय श्री तुलसी ने की। साध्वियो वी शिक्षा के लिए वे प्रयत्नशील बने। उनकी चतुर्मुखी प्रगति के लिए शिक्षाकेन्द्र और कलाकेन्द्रों की नियुक्ति हुई। परीक्षायेन्द्र भी लगे। योग्य, योग्यतर व वाग्यत्तम के न्प में नवीन पाठ्यक्रम स्थापित हुना। तब से अब तक पाठ्यक्रम के कई रूप परिवर्तित हो गए हैं। ____इन प्रयत्नो के फलम्बम्प माध्वी ममाज के लिए विकास का द्वार उद्घाटित हुआ। योग्यतम परीक्षाओ में उत्तीर्ण होकर उन्होंने पूज्य कालूगणी के अधूरे स्वप्न को साकार किया है और जन माध्वी ममाज का भाल ऊचा किया है।
वर्तमान मे तेरापथ का साध्वी समाज उच्चस्तरीय शिक्षा के पठन-पाठन मे, गमीर माहित्य सृजन मे व आगम-गोध के महत्त्वपूर्ण कार्य मे प्रवृत्त है। भारतीय एव भारतीयेतर भापाओ पर भी उनका अधिकृत अध्ययन है। कवि, आशुकवि, लेखक, वैयाकरण, साहित्यकार के रूप में श्रमण-बमणी मडली आचार्य श्री कालूगणी की वृहद कृपा एव आचार्य श्री तुलसी की श्रमशीलता का सुमधुर परिणाम है। अध्ययन-अध्यापन मे तेरापथ धर्म सघ अत्यधिक स्वावलम्बी है ।
साहित्य-जगत् मे आचार्य श्री तुलसी की सेवाए अनुपम है । उनके भव्य प्रयासो