________________
नील-सिन्धु आचार्य शान्तिनागर ३६१
सघ के समक्ष आचार्य पद उनको नियुक्त हुई। ___धर्म-प्रचार की दृष्टि में भी आनायं सान्निगागर जी ने महान् कार्य किया। दक्षिण भारत से उत्तर भारत में उनका आगमन हुआ। यह उनकी दिगम्बर उतिहाम में उल्लेखनीय यात्रा थी। इस पाना से पूर्व पाई मतान्दियो तर दिगम्बर मुनियो का मुख्य विहरण-रयन दक्षिण भारत ही बना हुआ था । अत उनर भारत मे वर्षों से अवरुद्ध दिगम्बर मुनियो के आवागमन के मार्ग को उद्घाटित करने का श्रेय नाचार्य शान्तिसागर जी को है।
वृद्धावन्या में उनसे नेत्र गति क्षीण हो गयी थी। उनकी आत्मज्योति अधिक प्रकाश के साथ प्राट न्युल गिरि पर ८३ वप की नवरया में उन्होंने आहारमात्र या पन्यिाग कर देहातक्ति पर विजय पायी। परम समाधि के साथ ३६ दिवनीय सोयना में पी०नि० २८८२ (वि०म० २०१२) मे उनका स्वगवाग
आचार्य नानिमागर जी के तमामय जीयन नं दिगम्बर परमगको नेजस्विता प्रदान की है एवं उनके धमनिउ जोगा। नए निसग का निर्माण हुना है।