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________________ १३. अज्ञान-तिमिरनाशक आचार्य अमोलक ऋषि स्थानकवासी परम्परा मे ऋषि सम्प्रदाय के आचार्य अमोलक ऋषि जी अपने युग के विश्रुत विद्वान् थे। वे मेडता-निवासी श्री कस्तूरचन्द जी ओसवाल के पौत्र और श्री केवलचन्द के पुत्र थे। उनकी माता का नाम हुलासी था। अमोलक ऋषि जी का जन्म वी० नि० २४०४ (वि० १६३४) को भोपाल मे हुआ। उनके छोटे भाई का नाम अमीचन्द था। अमोलक ऋषि जी को बाल्यावस्था मे मातृ-वियोग की सकटमयी घडी का सामना करना पड़ा। पिता केवलचन्द जी ने मुनि जनो से बोध प्राप्त कर सयम-दीक्षा स्वीकार कर ली। धार्मिक वातावरण अमोलक ऋपि के परिवार से सहज प्राप्त था। पिता की दीक्षा ने उन्हे सयम मार्ग के प्रति आकृष्ट किया। उन्होने वीर नि० २४१४ (वि. स० १९४४) मे भागवती-दीक्षा ग्रहण की। अमोलक ऋषि जी बुद्धिबल से सम्पन्न श्रमण थे एव गुरुजनो के प्रति विनम्र भी थे। उन्होने शास्त्रो का गम्भीर अध्ययन श्री रत्नऋषि जी के पास किया और उनके साथ गुजरात आदि अनेक देशो मे विचरे। रत्नऋषि जी के साथ अमोलक ऋषि जी सात वर्ष तक रहे थे। उन्हे ज्येष्ठ शुक्ला १२ गुरुवार, वी० नि० २४५६ (वि० १९८९) मे आचार्य पद से विभूषित किया गया। पिछले कई वर्षों से ऋषि सम्प्रदाय मे आचार्य पद रिक्त था। ___ आगमो का अमोलक ऋषिजी को गम्भीर ज्ञान था। सिकन्दरावाद (हैदराबाद) मे तीन वर्ष तक विराज कर उन्होने बत्तीस सूत्रो का सरल हिन्दी अनुवाद किया था। इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करते समय वे निरन्तर एकातर तप करते और सातसात घण्टो तक अबाध गति से लिखते थे। प्राकृत भाषा को न जानने वाले आगमार्थ पिपासु साधको के लिए यह अनुवाद उपयोगी सिद्ध हुआ। __ आगमो के अतिरिक्त उन्होने विशाल जैन साहित्य की रचना की। जैन तत्त्व प्रकाश आदि ७० ग्रथ उनके है। उनमे कई गेय आख्यान हैं। कई ग्रथ जैन तत्त्व ज्ञान से सम्बन्धित भी है। उनके कुल ग्रथो की सख्या आगमो को सम्मिलित कर देने पर १०२ हो जाती है। उनके ग्रथो की आवृत्तिया गुजराती, मराठी, कन्नड और
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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