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३७२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
प्रकट हो रहा था। भारीमान जी स्वामी वालमुनि की इस बात पर बहुत प्रसन्ना हुए और एक ही नाम उन्होंने पन पर रखा।
जयाचार्य चौदह वर्ष तक युवाचार्य पद पर रहे। तृतीय आचार्य रायचन्दजी के बाद वी०नि० २३७८ (वि० १९०८) मे उन्होने तेगपथ धर्म सघ का नेतृत्व सम्भाला था। उनके शासनकाल मै तेरापथ मघ एक शताब्दी को पार कर दूसरी शताब्दी मे चरण न्याम कर रहा था। वह युग विचागे के सक्रमण का युग था। तेरापथ को आन्तरिक व्यवस्थाए परिवर्तन माग रही थी। जयाचार्य का आगमन उपयुक्त ममय पर हुआ। उन्होने अत्युत्तम मूल-बूझ के द्वारा अनेक नई व्यवस्थागो को मघ मे जन्म दिया। ___ उस समय पुस्तको पर स्वामित्व सभी सन्तो का अपना था। जयाचार्य ने सबकी उपयोगिता के लिए उनका सघीकरण निगा। पुस्तको की सामग्री के लिए प्रति अगगामी पर गाथा प्रणाली का कर लागू किया। इस प्रकार आहार और श्रम-प्रदान की मम-व्यवस्थाए भी जयाचार्य के शासनकाल में हुई। महामती सरदारा जी भी इन प्रान्तिकारी प्रवृतियो मे महान् निमित्त बनी है। ___ मर्यादा-महोत्सव अपने-आपमें अनूठा महोत्सव है। इस अवसर पर विभिन्न स्थलो मे विहरण करने वाले मैकडो साधु-माध्वियो का आचार्य की मन्निधि में मिलन और सधीय मर्यादाओ का वाचन होता है । आगामी चातुर्मासो के आदेशनिर्देश भी प्राय इस प्रसग पर मिलते है। इसीलिए चातुर्माम सम्पन्न होते ही सबका ध्यान इम महोत्सव के माथ जुड़ जाता है। सहस्रा नर-नारी इस सम्मेलन मे एकत्रित होते हैं। मर्यादा-महोत्सव मनाया जाता है। इन पर्वो पर माधुसाध्वियो की योग्यताए सामने आती है और विशिष्ट उपलब्धिया सघ की होती है। इस महोत्सव के प्रारम्भीकरण का श्रेय जयाचार्य को ही है।
जैन समाज को जयाचार्य की सबसे महत्त्वपूर्ण देन उनका विशाल साहित्य है। उन्होने साढे तीन लाख पद्य परिमाण साहित्य की रचना की। गम्भीर साहित्य का निर्माण एकान्त के क्षणो मे होता है। आचार्य का जीवन प्रवृत्ति-बहुल होने के कारण उन्हें ऐसे क्षणो की उपलब्धि कठिन ही होती है। पर युवाचार्य मघवागणी ने बहुत-सी प्रवृत्तियो का सचालन अपने पर झेल लिया था। इससे जयाचार्य बहुत निश्चिन्तता से एकान्त के क्षणो मे डूबकर गम्भीर साहित्य की सृजना कर सके थे। __वे आगम टीकाकारो मे पद्यवद्ध रचना करने वाले प्रथम टीकाकार थे। उन्होने सात आगमो की टीकाए की। भगवती सन जैसे महान् आगम पर अस्सी हजार श्लोक परिमाण पद्य-रचना उनकी महामनीपा का चमत्कार था। एक दिन मे वे तीन सौ पद्य बना लिया करते थे। जैनागम भारती की यह आराधना जनशासन की अत्युत्तम प्रभावना थी।