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१८ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
आचार्य हुए। नवे नन्द के महामेधावी मत्री शकटाल की रोमाचकारी मृत्यु, नन्द राज्य का पतन, तदनन्तर मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई। मौर्य साम्राज्य के वाहक चन्द्रगुप्तादि सात नरेश हुए । जैन ग्रन्थो के उल्लेखानुसार उनके नाम इस प्रकार हैं-चन्द्रगुप्त, विन्दुसार, अशोक, कुणाल, सम्प्रति, पुण्य रथ एव वृहद्रथ । इन सात पीढियो के एक सौ साठ वर्ष के राज्यकाल में सम्राट् सम्प्रति के राज्य को मर्वोन्नत माना गया।" इस युग मे आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती युगप्रभावी आचार्य हुए एवं जैन शासन की महान् श्रीवृद्धि हुई।।
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति इस युग की आगम वाचना का कार्य है । वीर निर्वाण के सहस्राब्दी काल मे चार आगम वाचना हुई उसमे सर्वतो विशिष्ट आगम वाचना आचार्य देवद्धिगणी की है। आचार्य स्कन्दिल और नागार्जुन की वाचना आचार्य देवद्धिगिणी की आगम वाचना से लगभग एक सौ पचास वर्ष पूर्व हो गई थी। वीर निर्वाण की दसवी शताब्दी मे होने वाली यह मागम वाचना सबसे अन्तिम वाचना थी। इसके बाद जैन शासन मे सर्वमान्य वाचना नहीं हो पाई। अत आगम वाचना युग के विशिष्ट वाचनाकार आचार्य देवद्धिगणी की जैन शासन को युग-युग तक प्रकाश प्रदान करने वाली आगम वाचना के साथ एक हजार वर्ष का आगम युग समाप्त हो जाता है ।
उत्कर्ष युग ___उत्कर्ष युग वीर निर्वाण की ग्यारहवी (वि० ५३०) सदी से प्रारम्भ होकर वीर निर्वाण २००० (वि० १५३०) वर्ष तक का काल जैन शासन के उत्कृष्ट उत्कर्ष का काल था। इस युग मे महान् तेजस्वी एव वर्चस्वी आचार्य उदित हुए जो महान् दार्शनिक थे। विविध भाषाओ के अध्येता और विविध विषयो के वे निष्णात विद्वान् थे। उनकी स्वच्छ-सुतीक्षण प्रतिभा के दिव्य प्रकाश मे उस युग का सम्पूर्ण वातावरण अग्निस्नात स्वर्ण की भाति चमक उठा और जैन शासन की अभूतपूर्व प्रगति हुई, अत इस काल को उत्कर्ष युग की सज्ञा प्रदान की गई है।
न्याय युग का उद्भव
श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य सिद्धसेन, दिगम्बर परम्परा के प्रभावी आचार्य समन्तभद्र एव आचार्य अकलक भट्ट इस युग के उज्ज्वल नक्षन थे। इन आचार्यों का अभ्युदय जैन दर्शन का अभ्युदय था। इनका जन्म न्याय का जन्म था।