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४ जिनधर्म प्रभावक आचार्य जिनचन्द्र
(अकबर-प्रतिबोधक) अकवर-प्रतिवोधक आचार्य जिनचन्द्र सूरि जिनमाणिक्य सूरि के शिष्य थे एव अष्टलक्षी ग्रन्थ के प्रणेता महोपाध्याय समयसुन्दर जी के प्रशिष्य थे। वे चतुर्थ दादा सज्ञक आचार्य थे। उनका जन्म वी० नि० २०६५ (वि० १५९५) मे हुआ। उन्होने वी०नि० २०७४ (वि० १६०४) मे दीक्षा ग्रहण की। इस समय उनकी उम्र वर्ष की थी। वे वी०नि० २०८२(वि० १६१२) मे आचार्य 'पद पर आरूढ हुए।
उनकी प्रवचन शैली गभीर और प्रभावक थी। जनता पर उनके प्रवचनो का जादू-सा असर होता था।
एक बार जैन प्रभावक आचार्यों के विषय मे अकबर द्वारा प्रश्न उपस्थित होने पर किसी सभासद् ने जिनचन्द्र सूरि का नाम प्रस्तुत किया। ___ कर्मचन्द्र बच्छावत आचार्य जिनचन्द्र का परक भक्त था। अकबर के सकेत और उपासक कर्मचन्द्र की प्रार्थना पर आचार्य जिनचन्द्र सूरि ने लाहौर चातुर्मास किया। इस चातुर्मास मे आचार्य जिनचन्द्र के प्रवचनो से प्रभावित होकर अकबर वादशाह ने उन्हें युगप्रधान पद से अलकृत किया।
आचार्य जिनचन्द्र के प्रति वादशाह की हार्दिक निष्ठा थी। उन्होने कश्मीर जाते समय आचार्य जिनचन्द्र से आशीर्वाद पाया और सात दिन तक सारे राज्य 'मे हिंसा न करने की घोषणा की।
वादशाह के द्वारा कृत सम्मान का प्रभाव अन्यन्न भी हुआ। अनेक राज्यो मे कही दस दिन, कही पन्द्रह दिन, कही वीस दिन तक पशुबलि वन्द रही।
वादशाह जहागीर ने वी० नि० २१३६ (वि० स० १६६६) मे सभी साधुओ को देश की सीमा पर से बाहर निकाल देने का आदेश दे दिया था। ___ इस आदेश से समन देश मे विचित्र हलचल थी। श्रमण समाज प्रान्त और चिन्तित हुआ । इस समय जिनचन्द्र सूरि ने अपने मधुर उपदेश से जहागीर को समझाकर आदेश मे पूर्ण परिवर्तन करा दिया था। ____ आचार्य जिनचन्द्र सूरि जैन गगनागण मे चन्द्र की तरह चमके । उनका वी० नि० २१४० (वि० १६७०) मे स्वर्गवास हुआ।