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३४० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
साथ स्मरण कर आत्मालोचन की भावभूमि पर अभिनव स्वस्थता प्राप्त करते है। ___रत्नाकर सूरि के जन्म-दीक्षा, आचार्य पद-प्राप्ति के सम्बन्ध मे सामग्री अनुपलब्ध ही रही है। उनकी इस कृति-सवत् के आधार पर वे वी० नि० की अठारहवी शताब्दी (वि० स० १४वी) में विद्यमान थे।