________________
३३८ जैन धर्म के प्रभावक्र आचार्य
जगच्चन्द्र सूरि तप के धनी ही नही, विद्या-वैभव से भी सम्पन्न थे । सरस्वती उनके चरणो की उपासिका थी। मेवाड मे एक बार तीस जैन विद्वानो के साथ उनका शास्त्रार्थ हुआ। उसमे आचार्य जी के तर्क हीरे की तरह अभेद्य (अकाट्य) रहे । आचार्य जी के बौद्धिक कौशल से प्रभावित होकर चित्तौड नरेश ने उन्हे 'हीरक' (होरला) की उपाधि दी। उनका मुख्य विहरण-क्षेत्र मेवाड था। वही पर उनका वी०नि० १७५७ (वि० स० १२८७) को 'वीरशालि' नामक ग्राम मे स्वर्गवास हुआ।