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१६ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
आर्यवज्र के शिष्य परिवार से अज्जानाइली, अज्जपडमाव अज्ज जयति शाखा का जन्म हुआ था ।
आचार्य वज्रसेन के चार शिष्यो से उन्ही के नाम पर निवृत्ति, नागेन्द्र, विद्याधर और चन्द्रकुल का विकास हुआ। आगमयुग मे इन शाखाओ और कुलो का
अभ्युदय व्यवस्था मात्र था।
सिद्धान्त-भेद और क्रिया-भेद के आधार पर श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दो शाखाओ मे जैन सघ प्रथम बार विभक्त हुआ था। यापनीय सघ की समन्वयात्मक नीति ने इन दोनो के बीच समझौता करने का प्रयत्न भी किया पर जो खाई बन गई थी वह मिट न सकी ।
श्वेताम्बर परम्परा का मुनि समुदाय वी० नि० ८८२ (वि०४१२ ) मे दो भागो मे स्पष्ट रूप से विभक्त हो गया था । एक पक्ष चैत्यवासी सम्प्रदाय के नाम से तथा दूसरा पक्ष सुविहितमार्गी नाम से प्रसिद्ध हुआ । चैत्यवासी मुनि मुक्त भाव से शिथिलाचार को समर्थन देने लगे थे । शिथिलाचार की धारा सर्वज्ञत्व उच्छिन्न होने के बाद श्रमण वर्ग मे प्रविष्ट हुई । आचार्य महागिरि के द्वारा साभोगिक विच्छेद की घटना का प्रमुख कारण श्रमणो द्वारा शिथिलाचार का सेवन था। दस पूर्वधर आचार्य सुहस्ती की विनम्र प्रार्थना पर आर्य महागिरि ने साभोगिक विच्छिन्नता के प्रतिवन्ध को हटा दिया था पर भविष्य में मनुष्य की माया बहुल प्रवृत्ति का चिन्तन कर उन्होने साभोगिक व्यवहार सम्मिलित नही किया था। उसके बाद सुदृढ अनुशासन के अभाव मे श्रमणो द्वारा सुविधावाद को प्रश्रय मिलता गया । सम्प्रदाय के रूप मे इस वर्ग की स्थापना वी० नि० की नवी (वि० की ५वी) सदी के उत्तरार्द्ध में हुई । श्वेताम्बर परम्परा के भेद बीज का आगम युग की सहस्राब्दी मे प्रथम बार अकुरण हुआ था ।
स्कन्दिल और नागार्जुन
जैन परम्परा में आचार्य स्कन्दिल और नागार्जुन आगम वाचनाकार के रूप प्रसिद्ध है । नन्दी स्थविरावली के अनुसार आचार्य स्कन्दिल ब्रह्मद्वीपसिंह के शिष्य थे एव प्रभावक चरित्र मे इनको विद्याधर वश के और श्री पादलिप्त सूरि कुल मे माना है ।
आचार्य स्कन्दिल और नागार्जुन के समय मे पुन दुष्काल की काली घटाए घिर आई थी। इसमे श्रुतधरो की ओर श्रुत की महान् क्षति हुई | दुष्कालसम्पन्नता के वाद आचार्य स्कन्दिल की अध्यक्षता मे द्वितीय आगम वाचना हुई। इसमे उत्तर भारत विहारी श्रमण भी सम्मिलित थे। यह वाचना मथुरा मे होने के कारण माथुरी कहलाई । इस ममय आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता मे मी आगम वाचना हुई । यह वाचना वल्लभी मे होने के कारण 'वल्लभी वाचना' के
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