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३१८ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
विभूषित किया गया और आचार्य पद पर उनका नाम देव रखा गया। इसी अवसर पर चन्दनवाला नामक साध्वी को महत्तरा पद से अलकृत किया गया । साध्वी चन्दनवाला वीरनाग की बहिन थी।
आचार्य मुनिचन्द्र के आदेश से वे स्वतन्त्र विहरण करने लगे। एक वार वे धवलक नगर मे पहुचे, वहा जैन धर्म की महती प्रभावना हुई। ____ आचार्य मुनिचन्द्र का वी० नि० १६४८ (वि० ११७८) मे स्वर्गवास हुआ। उसके बाद वे मारवाड की तरफ आए। विद्वान् देववोध के द्वारा उनकी प्रशसा सुनकर नागपुर के राजा ने उनका भारी सम्मान किया था।
वैशाख शुक्ला पूर्णिमा के दिन वी० नि० १६५१ (वि० ११८१) मे पाटण के अधिनायक सिद्वराज की अध्यक्षता मे उनका दिगम्बर विद्वान् कुमुदचन्द्र के साथ महान् शास्त्रार्थ हुआ।' केशव आदि तीन विद्वान् प्रतिवादी कुमुदचन्द्र के पक्ष का तथा श्रीपाल और भानु नामक दो विद्वान् आचार्य देव का समर्थन कर रहे थे। महर्षि उत्साह, सागर और राम ये तीन विद्वान् उम सभा के प्रमुख सभासद् थे । बत्तीस वर्ष की अवस्था के युवा सन्त हेमचन्द्र, महान् विद्वान् श्रमण श्रीचन्द और राज वैतालिक भी वहा पर उपस्थित थे।
इस महान शास्त्रार्थ मे आचार्य देव विजयी हुए । सिद्धराज ने उन्हे तुष्टिदान (एक लाख स्वर्ण मोहर) के साथ वादी की उपाधि से अलकृत किया । उसी दिन से वे वादिदेव के नाम से प्रसिद्ध हुए। __ आचार्य वादिदेव कुशल साहित्यकार थे । विभिन्न दर्शनो का अवगाहन कर उन्होने 'प्रमाणनयतत्त्व लोकालकार' की रचना की थी। यह गन्थ ३७४ सूत्र और ८ परिच्छेदो मे निबद्ध न्यायविषयक मौलिक रचना है।
इस ग्रन्थ पर 'स्याद्वाद रत्नाकर' नामक सोपज्ञ टीका भी उनकी है।'
आचार्य वादिदेव आचार्य सिद्वसेन की कृतियो के प्रमुख पाठक थे। दिवाकर जी का 'सन्मति तर्क' उनका प्रिय ग्रन्थ था। 'स्याद्वाद-रत्नाकर' की रचना मे स्थान-स्थान पर उन्होने 'सन्मति तर्क' का उल्लेख किया है।
आचार्य वादिदेव की शिष्य मडली मे भद्रेश्वर और रत्नपुन नामक विद्वान् श्रमण थे । 'स्याद्वाद रत्नाकर' की रचना मे इन दोनो शिष्यो का उन्हे पूर्ण सहयोग था।
शिष्य भद्रेश्वर को उन्होने आचार्य पद पर नियुक्त किया। मारवाड और गुजरात को चरणो से पवित्र करते हुए आचार्य वादिदेव वी. नि० १६६६ (वि० १२२६) श्रावण कृष्णा सप्तमी के दिन ६३ वर्ष की अवस्था मे स्वर्गगामी बने । आचार्य वादिदेव के जीवन से सबद्ध विशेष घटनाओ के काल-परिचायक सवत् निम्नोक्त श्लोक है।
शिखिवेदशिवे (११४३) जन्म दीक्षा युग्मशरेश्वरे (११५२) वेदाश्वशकरे