________________
४० विद्वद्वैडूर्य आचार्य वादिदेव
प्रमाणतत्त्व लोकालकार के रचनाकार आचाय वादिदेव गुजरात के मदाहृत ( मड्डाहत) गाव के थे । जाति मे वे पोरवाल थे। उनके पिता का नाम बोरनाग और माता का नाम जिनदेवी था ।
जिनदेवी ने एक दिन स्वप्न में चन्द्रमा को अपने मुख में प्रवेश करते हुए देखा | उसने अपने स्वप्न की वान मुनिचन्द्र के मामने कही। स्वप्न का फलादेश बताते हुए मुनिचन्द्र बोले - " वहिन | चन्द्रमा के समान प्रतापी प्राणी का तुम्हारी कुक्षि में अवतार हुआ है । वह प्राणी भविष्य में विश्व के लिए आनन्दकारी होगा ।" आचार्यश्री के मुख से यह बात सुनकर जिनदेवी को अत्यन्त प्रसन्नता हुई । गर्भकाल की सम्पन्नता पर उसने वी०नि० १६१३ (वि०११४३ ) मेलकालाद्रि को भी प्रकम्पित कर देने में वज्रोपम द्युति के समान तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । चन्द्र-स्वप्न के आधार पर पिता वीरनाग ने पुत्र का नाम पूर्णचन्द्र रखा ।'
पूर्णचन्द्र ने 8 वर्ष की अवस्था मे आचार्य मुनिचन्द्र के पास दीक्षा ग्रहण की ।. उनका दीक्षा नाम रामचन्द्र रखा गया। रामचन्द्र मुनि प्रखर प्रतिभासम्पन्न थे । वे आचार्य मुनिचन्द्र से न्यायविषयक दुरवबोध ज्ञान ग्रहण करने मे सफल सिद्ध हुए। जनेतर मिद्धान्तो का उन्होने गम्भीर अध्ययन किया । शास्त्रार्थं करने मे भी वे अत्यन्त निपुण थे ।
धवलक नगर में विमत समर्थक बन्ध के माथ, मत्यपुर मे काश्मीर ओर मगर विद्वान के साथ, नागपुर मे दिगम्बर पडित गुणचन्द्र के साथ, चित्रकूट मे भागवत शिवभूति के साथ, गोपपुर मे गंगाधर के साथ, धारानगरी में धरणीधर के साथ, पुष्करणी मे ब्राह्मण विद्वान् पद्माकर के माथ और भृगुकच्छ मे कृष्ण नामक विद्वान् के साथ शास्नार्थ कर रामचन्द्र मुनि विजय को प्राप्त हुए थे ।
विमलचन्द्र, हरिचन्द्र, सोमचन्द्र, पार्श्वचन्द्र, शान्तिचन्द्र और अशोकचन्द्र -- ये छह विद्वान् मुनि रामचन्द्र के वाग्मित्व से प्रभावित होकर उनके परम मखा
वन गए ।
रामचन्द्र मुनि को वी० नि० १६४४ ( वि० ११७४ ) मे आचार्य पद पर