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३४ उर्जाकेन्द्र आचार्य अभयदेव (मल्लधारी)
जयसिंह सूरि के शिष्य मल्लधारी अभयदेव हर्पपुरी गच्छ के आचार्य थे। हर्षपुरी गच्छ का सम्बन्ध प्रश्नवाहन कुल कोटिक गण की मध्यम शाखा से था।
गुर्जराधिपति सिद्धराज ने उनको मल्लधारी की उपाधि से विभूपित किया। कुछ इतिहासकारो के अभिमत से इस उपाधि के प्रदाता गुर्जरनरेश कर्ण थे ।
मल्लधारी जी का अनेक राजाओ पर प्रभाव था। अजमेर के महाराजा जयसिंह ने उनकी प्रेरणा से अपने सम्पूर्ण राज्य मे अष्टमी, चतुर्दशी और शुक्ला पचमी के दिन 'अमारि' की घोपणा की।
भुवनपाल राजा ने जैन मन्दिर के पुजारियो से कर वसूल करना छोडा, शाकभरी के महाराजा पृथ्वीराज और सौराष्ट्र के अधिनायक खेंगार भी उनसे प्रवुद्ध हुए।
सहस्राधिक जैनेतरो को जैन बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य भी उन्होने किया। वे वी० नि० १६१२ (वि० ११४२) माघ शुक्ला पचमी के दिन पार्श्वनाथ की अन्तरिक्ष प्रतिमा-प्रतिष्ठा के समय विद्यमान थे।
जीवन के अन्तिम समय में उन्होने अजमेर की धरा पर ४७ दिन का अनशन किया। गुर्जर नरेश सिद्धराज अनशन की स्थिति मे गुजरात से चलकर उनके दर्शनार्थ वहा आए।
अपने व्यक्तित्व का अद्वितीय प्रभाव जनमानस पर छोडकर वी०नि० १६३८ (वि० ११६८) मे वे स्वर्गगामी बने। उनकी शवयात्रा भारी भीड के साथ सुबह सूर्योदय से प्रारम्भ हुई और साझ तक श्मशान घाट पहुची। मनीगण सहित महाराजा जयसिंह श्मशान तक पहचाने गए। देर सस्कार के बाद मल्लधारी जी की राख को महान् रोगविनाशक समझकर लोग अपने-अपने घर ले गए।
जिनके हाथ राख न लगी उन्होने वहा की मिट्टी को भी प्रसादरूप मे ग्रहण किया। ___इन प्रसगो से मल्लधारी जी अपने युग के महान प्रभावी आचार्य सिद्ध होते हैं।