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३२. आस्था-आलम्बन आचार्य अभयदेव ( नवागी टीकाकार)
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नवागी टीकाकार आचार्य अभयदेव खरतरगच्छ से सवधित थे । वे आचार्य जिनेश्वर सूरि के शिष्य थे। उनका जन्म वी० नि० १५४२ ( वि० १०७२) मे हुआ | इतिहास प्रसिद्ध गुजरात की धारा नगरी उनकी जन्मभूमि थी । महीधर श्रेष्ठी के वे पुत्र थे । उनकी माता का नाम धनदेवी था । वाल्यकाल मे गुरु से वोध प्राप्त कर उन्होने दीक्षा ग्रहण की। आगमो का गम्भीरता से अध्ययन किया । ग्रहण और आसेवन रूप विविध शिक्षाओ से सपन्न होकर महाक्रियानिष्ठ श्रमण अभयदेव शासन अम्भोज को विकसित करने के लिए भास्कर की तरह आभासित होने लगे ।
आचार्य वर्धमान के आदेश से जिनेश्वर सूरि ने उन्हें आचार्य पद से अलकृत किया ।
आचार्य अभयदेव सिद्धातों के गम्भीर ज्ञाता थे । एक वार ध्यान मे बैठे थे । टीका रचना की अन्त प्रेरणा उनके मन में उत्पन्न हुई। प्रभावक चरित आदि ग्रन्थो के अनुसार यह प्रेरणा शासन देवी की थी। निशीथ काल मे ध्यानस्य अभयदेव के सामने देवी प्रकट होकर बोली - "मुने । आचार्य शीलाक एव कोट्याचार्य विरचित टीका साहित्य मे आचाराग और सूत्रकृताग आगम की टीकाए सुरक्षित है । अवशिष्ट टीकाए काल के दुष्प्रभाव से लुप्त हो गई हैं । अत इस क्षतिपूर्ति के लिए संघ - हितार्थ आप प्रयत्नशील बनें एव टीका- रचना का कार्य प्रारम्भ करे ।
अन्तर्मुखी आचार्य अभयदेव बोले "देवी । मेरे जैसे जडमति व्यक्ति द्वारा सुधर्मा स्वामी कृत आगमो को पूर्णत समझना भी कठिन है। अज्ञानवश कही उत्सून की प्ररूपणा हो जाने पर यह कार्य उत्कृष्ट कर्मवन्धन का और अनन्त ससार की वृद्धि का निमित्त बन सकता है। शासन देवी के वचनो का उल्लघन करना भी उचित नही हैं, अत तुम्हारे द्वारा प्राप्त सकेत पर किंकर्तव्यविमूढ जैसी स्थिति मेरे मे उत्पन्न हो गयी है ।"
आचार्यं अभयदेव के असतुलित मन को समाधान प्रदान करती हुई देवी ने