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२६० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
न्याय विनिश्चय विवरण
यह ग्रन्य भट्ट अकलक के न्याय विनिश्चय ग्रन्य का २० सहस्र श्लोक परिमाण भाष्य है।
प्रमाण निर्णय
इस ग्रन्थ के चार अध्याय है एव प्रत्यक्ष, परोक्ष आदि प्रमाणो की समुचित सामग्री इसमे उपलब्ध है। यशोधर चरित
यह एक सर्ग का लघुकाय खण्डकाव्य है । इसके मात्र २६६ पद्य है। एकीभाव स्तोत्र
यह २५ पद्यो का स्तोत्र हैं । इसमे आचार्य वादिराज के आस्थाशील जीवन का प्रतिबिम्ब झलकता है। पार्श्वनाथ स्तोत्र
यह उच्च कोटि का काव्य है। इसके १२ सर्ग है। आचार्य वादिराज के प्रकाण्ड पाण्डित्य के दर्शन इस ग्रन्थ मे होते हैं।
अध्यात्माष्टक
इस ग्रन्थ की सज्ञा से स्पष्ट है, इस कृति में ८ पद्य हैं। यह रचना निर्विवाद रूप से आचार्य वादिराज की प्रमाणित नही है। त्रैलोक्यदीपिका
यह करणानुयोग ग्रन्थ है। विद्वानो का अनुमान है-यह रचना भी आचार्य वादिराज की होनी चाहिए। __ आचार्य वादिराज अपने युग के दिग्गज विद्वान् थे। कुशल वादी थे। पार्श्वनाथचरित्न की रचना उन्होने ई० स०१०२५ मे की थी। अत उनका समय वी० नि० १५५२ (वि० १०८२) के आसपास का प्रमाणित होता है।