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२०. साहित्य-सुधाश आचार्य शीलाक
निवृत्तिगच्छ के विद्वान आचार्य शीलाक सुविस्तृत टीकाओ के सृजनहार थे। वै मानदेव मूरि के शिष्य थे। उनकी प्रसिद्धि शीलाचार्य और तत्त्वादित्य के नाम से भी है । सस्कृत व प्राकृत दोनी भापाओ का उनको अधिकृत ज्ञान था। दस सहस्र श्लोक प्रमाण 'चउप्पन्न पुरिस चरिय' उनको प्राकृत रचना है। इस कृति मे चौवन उत्तम पुरुषो का जीवन-चरित्र अकित है । हेमचन्द्राचार्य ने 'निपष्टिशलाका पुरुषचरितम्' अन्य रचना मे इस कृति का सहारा लिया था। इस ग्रन्थ को शीलाक ने वि० ९२५ में सम्पन्न किया था। __शीलाक की स्फुरितमेघा का दर्शन उनके टीका साहित्य मे होता है। इन्होने प्रथम ग्यारह अगो पर टीकाए लिखीं । उनमे से आचारागव सूत्रकृताग पर लिखी गई टीकाए ही वर्तमान में उपलब्ध हैं। __आचाराग टीका बारह हजार श्लोक परिमाण व सूत्रकृताग टीका बारह हजार आठ सौ पचास श्लोक परिमाण है। मूल एव नियुक्ति पर आधारित इन टीकाओ की महत्ता विपय विवेचन मे है। टीकाकार ने शब्दार्थ करके ही सतोप नही माना अपितु प्रत्येक विषय की विस्तार से चर्चा की है और नियुक्ति गाथाओ के अर्थ को अच्छी तरह से समझाने का प्रयास किया है। प्राकृत व सस्कृत श्लोको के प्रयोग मे भाषा मे रोचकता भी पैदा हो गयी है। ___ गन्धहस्तीसूरि की आचाराग व सूत्रकृताग पर लिखी टीका आचार्य शीलाक के सामने थी। यह बात भी प्रस्तुत टीकाओ के पढने से स्पष्ट हो जाती है।
आचार्य शीलाक ज्ञान-चन्द्रिका को विस्तार देने हेतु साहित्य के निर्मल सुधाशु ये। उन्होने जैनागम पिपासु पाठको के सुवोधार्थ टीकाओ का निर्माण किया था। आचाराग, सूत्रकृताग टीकाओ का परिसमाप्ति-काल शक सम्वत् सात सौ वहत्तर के लगभग माना गया है। _ सूत्रकृताग टीका की परिसमाप्ति पर आचार्य शीलाक लिखते है "समाप्तमिद नालन्दाख्य सप्तममध्ययनम् । इति समाप्तेय सूत्रकृतद्वितीयागस्य टीका। कृता चेय शीलाचार्येण वाहरिगणिसहायेन।"
टीका निर्माण मे आचार्य शीलाक को वाहरिगणी का पर्याप्त सहयोग प्राप्त