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अध्यात्मनाद आचार्य अमृतचन्द्र २६७
नही था। उनके ग्रथो का अत्यन्त सूक्ष्मता से अवलोकन करने पर भी कही और किसी शब्द मे उनके अपने अह-प्रदर्शन की झलक तक नहीं मिलती। ____ अपनी साहित्यिक रचनाओ के विषय मे अपना परिचय भी उन्होने विलक्षण ढग से दिया है। वे लिखते हैं।
वर्णं कृतानि चिन पदानि तु पदै कृतानि वाक्यानि । वाक्य कृत पवित्र शास्त्रमिद न पुनरस्माभि ॥
-पुरुषार्थ सिद्धयुपाय -तरह-तरह के वर्षों से पद वन गए, पदो से वाक्य बन गए और वाक्यो से यह पवित्र शास्त्र वन गया । मैंने इसमे कुछ नहीं किया।
महान् विद्वान् आचार्य अमृतचन्द्र का यह निगर्वी व्यवहार उनकी उच्चतम महत्ता का बोध कराता है।
अध्यात्मनाद आचार्य अमृतचन्द्र वी० नि० १५वी (वि० १०वी) शताब्दी के विद्वान थे।