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२१८ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
सिद्धि शब्द ही उनके प्रौढ ज्ञान का सकेतक है। यह ग्रन्थ उक्त दोनो ग्रन्थो के बाद की रचना है। ___ समाधितन्त्र तथा इष्टोपदेश ये दोनो पूर्णत आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इन्हे पढने से लगता है रचनाकार ने पूर्ण स्थितप्रज्ञ जैसी स्थिति में पहुचकर इन कृतियो की रचना की थी।
सिद्धभक्ति प्रकरण ग्रन्थ भी आचार्य पूज्यपाद का बताया गया है। श्रुतभक्ति, चरित्नभक्ति, योगभक्ति, आचार्यभक्ति, निर्वाणभक्ति तथा नन्दीश्वरभक्ति आदि कई सस्कृत प्रकरण आचार्य पूज्यपाद के माने गए है। वैद्यक शास्त्र आचार्य पूज्यपाद का चिकित्सा-सम्बन्धी ग्रन्थ है।
शिमोगा जिलान्तर्गत 'नगर ताल्लुक' का ४६वा शिलालेख आचार्य पूज्यपाद के चार ग्रन्थो की सूचना देता है। उनमे एक नाम वैद्यक ग्रन्थ का भी है। प० नाथूराम प्रेमी के अभिमत से यह ग्रन्थ जैनेन्द्र व्याकरण के रचनाकार पूज्यपाद का नहीं है।
___ आचार्य पूज्यपाद के व्याकरणशास्त्र से आदिपुराण के कर्ता आचार्य जिनसेन, पार्श्वनाथचरित्र के रचयिता आचार्य वादिराज, नियमसार टीका के रचयिता पद्मप्रभ, नाममाला के रचयिता धनजय, जैनेन्द्रप्रक्रिया के रचयिता गुणनन्दी एव ज्ञानार्णव के रचयिता शुभचन्द्र अत्यधिक प्रभावित थे। यह सकेत इन विद्वानो की रचनाओ से प्राप्त होता है। ___ आचार्य पूज्यपाद का विहरण क्षेत्र द्रविड प्रदेश था। गग राजधानी तालवनगर (तलवाड) की 'प्रधान जैन वसीद' के वे अध्यक्ष थे। यह सस्थान दक्षिण भारत मे उस काल का एक महान् विद्यापीठ था।
द्रविड सघ की स्थापना वी०नि० ६६६ (वि. ५२६) में हुई थी। इस सध की स्थापना का श्रेय आचार्य पूज्यपाद के शिष्य प्राभूतवेत्ता महासत्त्व वचनन्दी को है। __ महाप्रतापी, मुक्तहस्तदानी, धर्म तथा सस्कृति का सरक्षक और जिनेश्वर के चरणो को अपने हृदय मे अचलमेरु के समान स्थिर रखने वाला जैन शासक अविनीत कोगुणी गगवश का महान् नरेश था। ___ उसने अपने महन्वाकाक्षी पुन युवराज दुविनीत कोगुणी को प्रशिक्षण पाने के लिए पूज्य देवनन्दी के पास ही रखा था। आगे जाकर दुविनीत पूज्यपाद का परम भक्त बन गया।
दुविनीत कोगुणी महान् साहित्य-रसिक और लेखक भी था। उसने पूज्यपाद के 'शब्दावतार' का कन्नड मे सफल अनुवाद किया था।
दुविनीत ई० स० ४८२ से ५२२ तक गगवश का शासक रहा है। इस प्रमाण के आधार पर देवनन्दी (पूज्यपाद) वी०नि० १००६ (वि०५३६) मे विद्यमान थे।