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५ दिव्य विभूति देवनन्दी ( पूज्यपाद )
आचार्य देवनन्दी अपने युग के उद्भट्ट विद्वान् थे । वे मूल सघान्तर्गत नन्दी सघ के प्रथम आचार्य थे । उनके पिता का नाम माधव भट्ट और माता का नाम श्रीदेवी था । ब्राह्मण कुल मे उनका जन्म और जैन सघ मे उनकी दीक्षा हुई ।
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योग, दर्शन, तर्क, व्याकरण आदि सभी विषयो मे वे निष्णात थे । देवनन्दी के तीन नाम थे - देवनन्दी, जिनेन्द्रबुद्धि और पूज्यपाद ।
श्रवणबेलगोल के शिलालेख न० ४० के अनुसार आचार्य जी का असली नाम देवनन्दी था । जिनतुल्य वुद्धि की विशिष्टता के कारण जिनेन्द्र बुद्धि और देवो द्वारा पूजा प्राप्त करने के कारण वे पूज्यपाद कहलाए।' उनका देव नाम भी बहुत प्रचलित था। जिनसेन ने आदि पुराण मे इसी नाम का उल्लेख किया है ।
उन्होंने पूज्यपाद नाम से भी अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की है । आज भी लोग उन्हे देवनन्दी नाम से अधिक पूज्यपाद नाम से पहचानते है ।
आचार्य जी का जीवन विविध गुणो का समवाय था । वे महान् तेजस्वी थे । शान्त्याष्टक का एक निष्ठा से जाप करने पर उनकी खोई हुई नयन- ज्योति पुन लौट आयी ।
श्रवणबेलगोल न० १०८ शिलालेख के आधार पर उन्हे अद्वितीय औषध ऋद्धि प्राप्त थी । एक वार उनके चरण प्रक्षालित जल के छूने मात्र से लोहा भी सोना वन गया । उनके 'विदेहगमन' की बात भी इसी शिलालेख के आधार से सिद्ध होती है ।
पूज्यपाद साहित्य रसिक और महान् शाब्दिक थे । 'जिनेन्द्र व्याकरण' साहित्यजगत् की प्रतिष्ठाप्राप्त कृति है । इस व्याकरण के कर्त्ता जिनेन्द्रबुद्धि पूज्यपाद ही थे । यह आज अनेक विद्वानो ने विविध प्रमाणो से मान्य किया है । जैन विद्वान् द्वारा लिखा गया यह प्रथम संस्कृत व्याकरण है । इसी व्याकरण के आधार पर आठ महान् शाब्दिको की गणना मे एक स्थान उनका भी है । शव्दावतार भी "उनके ज्ञान का श्रेष्ठ खजाना है । वह पाणिनी व्याकरण के ऊपर लिखी गयी टीका है ।
तत्त्वार्थसूत्र की व्याख्या मे उन्होने सर्वार्थसिद्धि का निर्माण किया । सर्वार्थ