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२. सरस्वती-कठाभरण आचार्य सिद्धसेन
आना मिरमेन गोगाम्बर परमग में गौरवमयन्यान प्राप्त है । वे ममयं माहित्यकार, प्रकृष्टगामी एव गगृत भाषा प्रगल्म विद्वान थे। विगधर गच्छीय आनायं पादलिप्त नी आम्नाय के प्रभायर आचार्य वृद्धयादी उनके दीक्षागुरु थे। उनो दादागुरामा नाग मादिन था।
आचाय गिदमन का जन्म विशाला के फात्यायन गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। उगोपिना मा नाम देयपि और माता का नाम देवधी था। देवर्षि गजमान्य ग्राम।
आनायं गिसमेन को अपने प्रकाण्डपाण्डित्य पर भारी अभिमान या। वे अपने को दुनिया में नया अपगजेय मानते थे। गाम्या में हार जाने पर विजेता का शिप्यत्व स्वीकार कर लेने में वे दनप्रतिश थे। ___ यामगुगल आगाय पद्धवानी के तुष्य को चर्ना नत्र प्रमारित हो रही थी। जनगे माम्बाथं करने की उदयाला मिद्धमेन में थी। एक बार भृगुपुर के मार्ग में दोनो विद्वानों का मिलन हुआ। मिद्धमेन ने आचार्य वृद्धवादी के सामने शास्त्रार्थ करने का प्रन्ताव रया। आनार्य वृद्धवारी ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया । गोपालको ने मध्यम्यता की। शान्तार्य प्रारम्भ हुआ। प्रथम वक्तव्य विद्वान् गिद्धसेन ने दिया । वे सानुप्राम मन्गृत भापा मै धाराप्रवाह बोलते गए । गोपालको की समझ मे उनका एक भी शब्द नही आया।ये उन्मुख होकर वोले-"पण्डित । पव से अनर्गल प्रलाप कर रहा है । तुम्हारी कर्णकटूक्ति हमारे लिए अनह्य हो रही है । चुप रह, अब उस वृद्ध को बोराने दे।"
सर्वज्ञत्व की निषेध सिद्धि विषय पर पक्ष प्रस्तुत कर विद्वान् सिद्धसेन बैठ गए।
आचार्य वृद्धवादी ने सर्वज्ञत्व समर्थन पर वक्तव्य दिया, तदनन्तर वे कर्णप्रिय चिन्दणी छन्द मे वोले
नवि मारियइ नवि चोरियइ परदारह गमणु निवारियइ ।
थोवा थोव दाइयड सग्गि टुकु टुकु जाइयई ।। हिंसा नही करने से, चोरी नही करने से, परदारा सेवन नही करने से, शुद्ध दान से व्यक्ति धीमे-धीमे स्वर्ग पहुच जाता है।