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३०. लब्धगौरव आचार्य गुणधर - पखण्डागम की भाति प्राकृत भाषा में निबद्व कपाय प्रामृत ग्रन्थ को दिगम्बर परम्परा मे मौलिक स्थान प्राप्त है। इम गन्य के रचनाकार आचार्य गुणधर थे। गुणनिधि आचार्य गुणधर आचार्य धरसेन के समकालीन थे। धरमेनाचार्य की भाति वे भी पूर्वाशो के ज्ञाता थे। ज्ञानप्रवाद नामक पचमपूर्व की १०वी वस्तु के अधिकारान्तर्गत तृतीय पेज्जदोप पाहुड मे उन्होंने कपाय प्राभूत ग्रन्य का निर्माण किया था। इस गन्थ के २३३ गाथा मूत्र है। प्रत्येक मूत्र की मापा मक्षिप्त एव गूढार्थक है। __यह ग्रन्थ पन्द्रह अधिकारो में विभक्त है । इन अधिकारो मे क्रोध आदि कपायों की राग-द्वेपमयी परिणतियो का विस्तार से वर्णन है तथा मोहनीय कर्म की विभिन्न अवस्थाओ को और इसे शिथिल करने वाले आत्मपरिणामो को ममन्दर्भ समझाया गया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ पर यतिऋपम ने छह महस्र श्लोक परिमाण चूणि साहित्य की रचना की है। आचार्य वीरसेन एव जिनसेन ने इसी ग्रन्थ पर ६० सहस्र श्लोक परिमाण जयधवला नामक टीका लिखी है।
कपाय प्राभूत के रूप में साहित्य युग को अनुपम उपहार प्रदान करने वाले अतिशय गौरवलब्ध आचार्य गुणधर का समय आचार्य धरसेन के समकालीन होने के कारण वी० नि० की ध्वी (वि० २) शताव्दी है।