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२५ अक्षयकोष आचार्य आर्यरक्षित
जार्यरक्षित अनुयोग व्यवस्थापक आचार्य थे । अनुयोगद्वार आगम के निर्यूहक घे | युगप्रधान आचायों की परपरा में भी उनको विगिप्ट स्थान प्राप्त था । मध्य प्रदेश (मानवा) के अतगंत दशपुर नगर में वी० नि० ४२२ (वि० ५.२ ) मे उनका जन्म हुआ । वर्णज्येष्ठ, कुलश्रेष्ठ, नियानिष्ठ, कलानिधि, राजपुरोहित सोमदेव के वे पुत्र थे । उनकी माता का नाम रुद्रसोमा था । रुद्रमोमा उदार हृदय, प्रियभाषिणी महिला थी । वह जैन उपासिका यो । उसके द्वितीय पुत्र का नाम फन्गरक्षित था । कुल की घुरा को वहन करने में दोनो पुत्र सूर्याश्व की तरह सक्षम थे । पुरोहित मोमदेव ने दोनो पुत्रो को वेदो का मागोपाग अध्ययन करवाया । शास्त्रीय ज्ञान का पीयूष पान कर लेने पर भी महाविद्वान् आर्यरक्षित का मानस अतृप्ति का अनुभव कर रहा था । आगे पढने की तीव्र उत्कठा उनमें थी। विशेष प्रशिक्षण पाने के लिए वे पाटलिपुत्र गए । सद्यग्राही जागृत कुंडलिनी के वल से धृतिघर प्रकृष्ट वुद्धिमान आर्यरक्षित वेदो, उपनिषदो के पारगामी मनीषी वने । यथेप्सित अध्ययन कर लेने के बाद उपाध्याय का आदेश प्राप्त कर वे दशपुर लौटे। राजपुरोहितपुत्र होने के कारण महाप्राज्ञ आर्यरक्षित को राजसम्मान प्राप्त हुआ नागरिको ने हार्दिक अभिवादन दिया एव घर-घर से उन्हे आशीर्वाद मिला । मभी का भव्य स्वागत झेलते हुए आर्य रक्षित मा के पास पहुचे । रुद्रसोमा सामायिक कर रही थी । उसने आशीर्वाद देकर अपने पुत्र का वर्धापन नही किया ।
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राजसम्मान पा लेने पर भी मा के आशीर्वाद के विना जननी वत्सल आर्यरक्षित खिन्न थे । सोचा, धिक्कार है मुझे । शास्त्र समूह को पढ लेने पर भी मैं मा को तोप नही दे सका।' सुत के उदासीन मुख को देखकर सामायिक-सपन्नता के बाद रुद्रसोमा वोली - "पुत्र | जो विद्या तुझे आत्मवोध न करा सकी उससे क्या ? मेरे मन को प्रसन्न करने के लिए महाकल्याणकारी जिनोपदिष्ट दृष्टिवाद का अध्ययन करो।" आर्यरक्षित ने चितन किया- "दृष्टिवाद का नाम भी सुदर है । इसका अध्ययन मुझे अवश्य करना चाहिए।" मा से आर्य रक्षित ने दृष्टिवाद के अध्यापनार्थ अध्यापक का नाम जानना चाहा । रुद्रसोमा ने बताया - " अगाध ज्ञान के निधि, दृष्टिवाद के ज्ञाता आर्य तोपलिपुत्र नामक आचार्य इक्षुवाटिका मे विराज