________________
विलक्षण वाग्मी आचार्य वन स्वामी १५३
-१० इतोय पदरस्सामी दवित्रणायहे
विभिनयप। जाप पारसपरिमग स तो समता छिन्नपपा निराधारजात ।
(मावश्यक पूणि, पताक ४०४) ११ पास पपसापहि अग्नयपरे राम पुष, मपयणपउन च अपरिही।
(विविध तीर्य गल्प, पृ० ३८) १२ जायत मग्नपारा ना मानिमाणुप्रोगस्न । मेगारेग पुढ़त सानिमगुह मिट्टियाए ॥१६॥
(जायस्य मलय नियुक्ति, पृ० ३८३)