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१५२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
युगप्रधान आचार्यों की परपरा मे वज्रम्वामी का जीवन-प्रसग अत्यन्त प्रभावक एव विस्मयकारी घटनाओ से अनुस्यूत है। वानीशाखा (वायरी शाखा) का निर्माण आर्य वज्र स्वामी के नाम पर हुआ।
आधार-स्थल
१ जणुद्धरिया विज्जा मागासगमा महापरिलायो। वदामि अज्जवइर अपच्छिमो जो सुमधराण ॥७६६।
(आवश्यक नियुक्ति, मलयवृत्ति, भाग २, पनाक ३६०) २ घणपालसेठिया, भणइ सुनदत्ति तमि चेव पुरे। देह मम धण गिरिणो, जेणाह त वसे नेमि ॥१४॥
(उपदेशमाला विशेष वृत्ति, पनाक २०७) ३ 'जेण कुमारीण पिया, जोवणभरभारियाण भत्तारो। थेरते पुत्तो पुण, नारीण रवरको होइ ॥२२॥
(उपदेशमाला विशेष वृत्ति, पनाक २०७) ४ ता ऊसवो स सन्नी, निम्मलमइनाणसगमो सुणइ । महिलाण तमुल्लाव जाइसरणो तमो ॥३१॥
(उपदेशमाला विशेषवृत्ति, पन्नाक २०८) ५ अतिखिन्ना च साऽवादीदवाऽऽयंसमितो मुनि । साक्षी सस्यश्च साक्षिण्यो भापे नाऽत किमप्यहम् ॥१४॥
(प्रभावक चरित, पनाक४) ६ निवसतो तो तासिं, समीवदेसे सुणइ अगाई।
एक्कारमवि पढतीण, ताव तेणोवलद्धाणि ||९७॥ एगपयाओ पयसयमणुसरइ मइ तहाविहा तस्स । जाओ अ अठ्ठवरिसो, ठविओ गुरुणा नियसमिवे ॥८॥
(उपदेशमाला, विशेप वृत्ति, पताक २१०) ७ नियत देवपिण्डोऽय साधूना नहि कल्पते । तस्मादनात्तपिण्डोऽपि व्रजामि गुरुसन्निधौ ॥१४॥
(परि० पर्व०, सर्ग १२) ८ वज्रप्राग्जन्मसुहृदो ज्ञानाद विज्ञाय ते सुरा । तस्याचार्य प्रतिष्ठाया चक्रुरुत्सवमद्भुतम् ॥१३२॥
(प्रभावक चरित, पनाक ६) है तनव महाधनधनथेष्ठिनन्दना रुक्मिणी। प्रतिवोध्य तेन भगवता निर्लोभचूडामणिना प्रवाजिता ।
(विविध तीर्थ कल्प, पाटलिपुत्र नगरकल्प, पृ०६९)