________________
१५० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
की ओर जाने का आदेश दिया। द्वादश वर्षीय भयकर दुर्भिक्ष के कारण दक्षिण विहारी श्रमण संघ को आहोरोपलब्धि कठिन हो गई। वन स्वामी ने आपत्कालीन स्थिति मे क्षुधा-शान्ति के लिए लब्धि पिंड (लब्धि द्वारा निर्मित भोज्य सामग्री) ग्रहण करने का और विकल्प मे अनशन स्वीकार का अभिमत शिष्यो के सामने प्रस्तुत किया। निर्मल चरित्र पर्याय के पालक आर्य वज्र स्वामी ने इस प्रकार के परामर्श प्रदान का प्रयोग शिष्यो के धृति परीक्षणार्थ ही किया होगा।
ताहे भणति सव्वे, भत्तेणेएण सामि | अलमत्थु । अणसणविहिणाऽवस्स, साहिस्सामो महाधम्म ॥३६॥
(उप० वृ०, पृ० २१८) -सयमनिष्ठ श्रमणो ने एक स्वर मे कहा-"भगवन् । सदोप आहार हमे किसी भी स्थिति मे स्वीकार नही है। भोजन बहुत किया है। अब अनशन विधिपूर्वक उत्कृष्ट चारित्न धर्म की आराधना में अपने-आपको नियोजित करेगे।"
मरणान्तक स्थिति में भी शिष्य गण का दृढ आत्मबल देखकर वज्र स्वामी प्रसन्न हुए एव विशाल श्रमण परिवार सहित आर्य वज्र स्वामी अनशनार्थ गिरि शृग की ओर प्रस्थित हुए। उनके साथ एक लघु वय का शिष्य था। अवस्था की अल्पता के कारण वज्र स्वामी उसे अनशन मे साथ लेना नहीं चाहते थे। उन्होने कोमल शब्दो मे शिष्य से कहा अज्ज वि त वच्छ लहू | अच्छ सु एत्थेव ताव पुरे ।।४१॥
(उप० वृ०, पृ० २१८) -वत्स | अनशन का मार्ग बहुत कठिन है | तुम बालक हो। अव भी यही पुर या नगर मे रुक जाओ।
आर्य वज्र स्वामी द्वारा निर्देश मिलने पर भी कष्ट-सहिष्णु उच्च अध्यवसायी बाल मुनि रुकने के लिए प्रस्तुत नही हुआ । अनशन-पथ की कठोरता उसे तिलमात्र भी विचलित न कर सकी।
स्वेच्छापूर्वक बाल मुनि के न रुकने पर किसी कार्य के व्याज से उसे एक ग्राम मेप्रेषित कर ससघ वज्र स्वामी आगे बढ़ गए। कार्य-निवृत्त होकर वह शिष्य लौटा, उसे सघ का एक भी सदस्य दिखाई नहीं दिया। वह खिन्न हुआ, सोचा-मुझे इस पण्डित-मरण मे गुरुदेव ने अपना साथी नही बनाया, क्या मै इतना नि सत्त्व, निर्वीर्य, निर्वल ह? वह वहा से चला-मेरे द्वारा उनकी तपोमयी ध्यान साधना मे किसी प्रकार का विक्षेप न हो यह सोच, वज्र स्वामी जिस गिरिशृग पर अनशनस्थ हो गए थे उसी पहाड की तलहटी मे पहुचकर तप्त पापाण शिला पर पादोपगमन अनशन स्वीकार कर लिया। तप्त शिला के तीव्र ताप से शिशु मुनि का नवनीतसा कोमल शरीर झुलसने लगा। भयकर वेदना को समता से सहन करता हुआ लघुवय मुनि उन सवसे पहले स्वर्ग का अधिकारी वना। वाल मुनि की उत्तम