________________
२२. पारस-पुरुष आचार्य पादलिप्त
आचार्य पादलिप्त गगन-गामिनी विद्या के स्वामी एव शातवाहन वशी राजा हाल की सभा मे शोभाप्राप्त विद्वान् थे। आठ वर्ष की अवस्था मे दीक्षित होकर दस वर्ष की अवस्था मे आचार्य पद के दायित्व को पा लेना उनकी महती योग्यता का सूचक है।
न्यायनीति-कुशल, शक्तिशाली राजा विजय वर्मा के द्वारा शासित कौशल नगरी मे आचार्य पादलिप्त का जन्म हुआ। कौशल नगरी के निवासी विपुल श्रीसम्पन्न श्रेष्ठी फुल्लचन्द्र उनके पिता थे। उनकी माता का नाम प्रतिमा था। प्रतिमा रूपवती एव गुणवती महिला थी। उसकी वाक् माधुरी के सामने सुधा घूट भी नीरस प्रतीत होती। विविध गुणो से सम्पन्न होने पर भी नि सन्तान होने के कारण प्रतिमा चिन्तित रहती। अनेकविध औषधियो का प्रयोग तथा नाना प्रकार के जन-मत्र आदि भी उसकी चिन्ता को मिटा न सके। एक बार उसने सन्तानप्राप्ति हेतु वैरोट्या देवी की आराधना मे अष्ट दिन का तप किया । तप के प्रभाव से देवी प्रकट हुई। उसने कहा-"ज्ञान-सागर, बुद्धि-उजागर, लब्धिमम्पन्न आचार्य-नागहस्ती के पाद प्रक्षालित उदक का पान करो, उससे तुम्हे पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी।"
आचार्य नागहस्ती विद्याधर गच्छ के थे। विद्याधर गच्छ विद्याधर वश के श्रुताम्भोनिधि युगप्रधान आचार्य कालक से सम्बन्धित था।
देवी के मार्ग-दर्शन से प्रतिमा प्रसन्न हुई। वह भक्ति-भरित हृदय से उपाश्रय मे पहुची। आचार्य नागहस्ती के पाद-प्रक्षालित उदक की उपलब्धि अपने सम्मुख आते हुए एक मुनि के द्वारा उसे हुई। __ आचार्य नागहस्ती से दस हाथ की दूरी पर चरणोदक पान करने के कारण उसे महाकान्तिमान्, धुतिसम्पन्न दस सन्तानो की प्राप्ति बतलाई। प्रथम पुत्र के महाप्रभावी होने का सकेत भी उन्होने दिया। ___ चम्पक, कुसुम आदि नाना सुमनो के मकरन्द पान से उन्मत्त मधुपो की ध्वनि के समान मधुर गिरा से सभाषण करती हुई प्रतिमा विनम्र होकर बोली--"गुरुदेव, मैं अपनी प्रथम सन्तान को आपके चरणो मे समर्पित करूगी।" कृतज्ञता