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तेजोमय नक्षत्र आचार्य स्थूलभद्र ८३
किया। __ महामात्य के लिए मौत की घटी बजने लगी थी। जिस मन्त्री का मार्गदर्शन पाने नागरिक जन प्रतीक्षारत रहते थे, आज उमी मन्त्री का रूप हर आख मे सदेहास्पद बन गया था। शकटाल सच्चाई पर होते हुए भी उसके लिए वातावरण का उल्टा चक्र घूमना प्रारम्भ हुआ। वर्षों से सचित यश-सूर्य को कालिमा का राहु ग्रसने का प्रयास कर रहा था। मन्त्री के घर पर प्राप्त राजसम्मनाई सामग्री ने नन्द के हृदय को पूर्णत बदल दिया। कवि की यह अनुभूतिपूर्ण वाणी सत्य प्रमाणित हुई
राजा योगी अगन-जल इनकी उलटी रीत।
डरते रहियो परशगम-ए थोडी पाले प्रोत ।। दलिदान हो जाने वाले अमात्य के प्रति भी राजा का विश्वास डोल गया। चिन्तन के हर विन्दु पर अमात्य का कुटिल रूप उभर-उभर राजा नन्द के सामने आ रहा था।
प्रात कालीन क्रियाकलाप से निवृत्त होकर शकटाल राजमभा मे पहुचा। नमस्कार करते समय राजा की मुखमुद्रा को देखकर महामात्य चिन्ता के महासागर में डूब गया। वह जानता था राजा के प्रकोप की परिणति कितनी भयकर होती है । समयता से अपने परिवार के भावी विनाश का भीषण रूप उसकी आखो मे तैरने लगा । अपकीति मे वचने के लिए और परिवार को विनाशलीला से वचा लेने के लिए अपने प्राणोत्सर्ग के अतिरिक्त कोई मार्ग अमात्य की कल्पनाओ मे नही था। उमने अपने घर आकर श्रीयक से कहा-"पुन | अपने परिवार के लिए किसी पिशुन के प्रयन्न ने सकट की घडी उपस्थित कर दी है । हम सवको मौत के घाट उतार देने का राजकीय आदेश किमी क्षण प्राप्त हो सकता है। परिवार की सुरक्षा और यश को निष्पालक रखने के लिए मेरे जीवन का बलिदान आवश्यक है। यह कार्य पुत्र, तुम्हे करना होगा। अत मैं जिस समय राजा के चरणो मे नमस्कार हेतु झुक उम समय निएशक होकर अगज । तीन असिधारा से मेरा प्राणान्त कर देना । इस समय प्राणो का व्यामोह अदूरदशिता का परिणाम होगा।"
पिता की बात सुनकर श्रीयक स्तब्ध रह गया। दो क्षण रुककर बोला"तात पितृ-हत्या का यह जघन्य कार्य मेरे द्वारा कैसे सम्भव हो सकता है?"
सयडालेण भणिय, तालउडे भक्षियमि मयि पुन्व । निवपायपडणकाले, मरिज्जसु त गया सको ॥३८।।
(उपदेशमाला, विशेप वृत्ति, पृ० २३६) पुत्र की दुर्वलता का समाधान करते हुए पाकटाल ने कहा-"वत्स मैं नमन करते ममय मुख में तालपुट विप स्थापित कर लूगा अत तुम पितृहत्या दोष के