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जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
शकटाल नम्र होकर बोला- भूपते । यह आपकी कृपा है, मुझे इतना सम्मान प्रदान किया पर मैंने श्लोको की प्रशमा की थी बररुचि के वैदुष्य को नही । वररुचि जिन श्लोकों को बोल रहा है वह उसकी अपनो रचना नही है ।"
नन्द ने कहा - " मन्वीश्वर । यह कैसे हो सकता है ?"
अपने कथन की भूमिका को सुदृढ करते हुए मवी बोला- "बररुचि द्वारा उच्चारित श्लोको को मेरी सातो पुत्रियो द्वारा तत्काल सुन सकते हैं।"
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महामात्य के एक ही वाक्य मे वररुचि का महत्त्व राजा नन्द की दृष्टि में क्षीण हो गया ।
दूसरे दिन राजसभा के मध्य अपनी सातों पुत्रियो के प्रतिभा-बल से वररुचि के द्वारा राजा नन्द के सम्मुख निवेदित श्लोको का परावर्तन कराकर उसके प्रभाव को प्रतिहत करने मे मत्री शकटाल सफल हो गया । वररुचि पर राजा कुपित हुआ और उसी दिन से उसे दीनारों का दान मिलना बन्द हो गया ।
वररुचि की यह पराजय नन्द साम्राज्य के पतन का बीजारोपण था ।
महामात्य शकटाल के प्रति वररुचि के हृदय में प्रतिशोध की भावना अकु-रित हुई । जनसमूह पर पुन प्रभाव स्थापित करने के लिए मायापूर्वक वररुचि गंगा से अथराशि को प्राप्त करने लगा। प्रात काल कटिपर्यंत जल में स्थित विद्वान् वररुचि के द्वारा गंगा का स्तुति पाठ होता और उसी समय वडी भीड के सामने गंगा की धारा से एक हाथ ऊपर उठता और १०८ स्वर्ण मुद्राओ की थैली वररुचि को प्रदान कर देता था । यह सारा प्रपच वररुचि के द्वारा रात्रि के समय सुनियोजित होता था ।
निशा के समय वह गंगाजल में यन्त्र को स्थापित कर वस्त्र से वन्धी हुई एक सो आठ दीनारो की गाठ उसमे रख देता था । प्रात कटि पर्यन्त जल में स्थित होकर जनसमूह के सामने गगास्तुति पाठ करता । स्तुतिपाठ की सम्पन्नता कर वररुचि पैर से यन्त्र को दवाता । दवाव के साथ ही यन्त्र से एक हाथ दीनारो की गाठ के माथ ऊपर उठता एव पैर का दबाव शिथिल कर देने पर नीचे की ओर जाता हुआ हाथ अदृश्य हो जाता । वररुचि पर गंगा की यह कृपा जनता की दृष्टि मे विस्मयकारक थी । नगर-भर मे इस अपूर्व दान की चर्चा प्रारम्भ हुई और एक दिन यह चर्चा कर्णानुकर्ण परम्परा से राजा नद के कानो तक पहुची । मत्रणा के समय राजा नद ने शकटाल कहा - "अमात्य । वररुचि को भागीरथी प्रसन्न होकर एक सौ आठ दीनारों का दान कर रही है। घटना की यथार्थता से अवगत होने के लिए मैं भी इसे कल प्रात देखने की इच्छा रखता हू ।"
सचिव ने झुककर वसुधानाथ के आदेश को समादृत किया। नगर मे गंगा तट पर नद के पदार्पण की घोषणा हो गयी ।
अमात्य शकटाल रहस्यमयी घटना की पृष्ठभूमि को भी सम्यक् प्रकार से