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तेरहवी और चौदहवीं शताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि
श्रीमानानन्दधामा प्रतिवधनतमामानसंदायिवादो।
जीयादाचन्द्रतारं नरपतिविदितः श्रीप्रभाचन्द्रदेवः ॥ पट्टावली के इस पद्य गे प्रकट है कि भट्टारक प्रभाचन्द्र रत्नकीति भट्टारक के पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए थे। रत्नकीति अजमेर पढ़ के भट्टारक थे। दूसरी पदावली में दिल्ली पट्ट पर भ० प्रभाचन्द्र के प्रतिष्ठित हाने का समय सं० १३१० बतलाया है । और पट्टकाल म० १३१० मे १३८५ तक दिया है, जो ७५ वर्ग के लगभग बटना है। दूसरी पट्टावली में स० १३१० पौप दी १५ प्रभाचन्द्र जी गहम्थ वर्प १२ दक्षा वर्ष १२ पट्ट वर्ष ७८ माम ११ दिवस १५ अन्तर दिवस ८ सर्व वर्ष ८ मास ११ दिवस ३ । (भट्टारक सम्प्रदाय प०६१)।
भट्टारक प्रभाचन्द्र जब भ रत्नकीति के पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए. उम गमय दिल्ली में किमका गज्य था, इसका उक्त पट्टालियों में कोई उल्लेग्न नही है। किन्तु १० प्रभाचन्द्र के गिप्य घनपाल के तथा दम शिष्य ब्रह्म नाथगम के स०१४५४ और १४१६ के उल्लेखो से ज्ञान होता है कि प्रभाचन्द्र ने मुहम्मद बिन तुगलक के मन को अनजित विया था और वादी जनी को वाद मे पगरत किया था - जमा कि उनके निम्न वाक्यों में प्रकट :
तहि भव्य हि सुमहोच्छव विहियउ, सिरिरयणकित्ति ण्टेणिहियउ । महमंद साहिमणुरंजियउ, विज्जविाइयमणुभजियउ ॥
-बाहुबलि चरित प्रशस्ति उग समय दिल्ली के भव्य जनो नाक उत्सव किया था और भ० रकाकांति के पद पर प्रभाचन्द्र को प्रनिटित किया था। मुहम्मद बिन तुगलक मन १३२५ (वि०म० १९८२) मे मन १३५१ वि० सं० १८०८) तक गज्य किया है। यह बादशाह बहभाप:-विज, न्यायी, विद्वानों का गमादर करने वाला प्रार अत्यन्त कठोर शासक था। अतः प्रभानन्द्र इमने राज्य में म०१३८५ के लगभग पट्ट पर प्रतिष्ठिन हा हो। दग कथन में पटालियो का वह समय छ अानुमानिक गा जान पड़ता है। वह इतिहाग की कगोटी पर ठीक नहीं बैठता । अन्य किमी प्रमाण से भी उसकी पुष्टि नहीं होती।
प्रभाचन्द्र अपने अनेक शिष्यों के साथ पट्टण, खभात, धागनगर और देवगिरि होते हए जोइणिपुर (दिल्ली) पधारे थे। जैसा कि उनके शिप्य धनपाल के निम्न उल्लेख से स्पष्ट है:
पटणे खंभायच्चे धारणार देवगिरि।
मिच्छामयविहुणंतु गणिपत्तउ जोयणपुरि॥ वा बलि चरिउ प्र० पागधना पजिका के म०१४१६ के उल्लेख में स्पष्ट है कि व भ. रत्नाति के पटट को मजीन बना रहे थे । इतना ही नही, किन्तु जहा वे अच्छे विद्वान, टीकाकार, व्याख्याता और मंत्र-तत्र-वादी थे, वहा वे प्रभावक व्यक्तित्व के धारक भी थे। उनके अनेक शिप्य थे। उन्होंने फीरोजशाह तुगलक के अनुरोध पर रक्ताम्बर वस्त्र धारण कर अन्तःपुर में दर्शन दिये थे। उस समय दिल्ली के लोगों ने यह प्रतिज्ञा की थी कि हम अापको सवस्त्र जती मानेगे । इस घटना का उल्लेख बखतावर शाह ने अपने बुद्धिविलास के निम्न पद्य में किया है :
दिल्ली के पातिसाहि भये पेरोजसाहि जब, चांदी साह प्रधान भट्टारक प्रभाचन्द्र तब, आये दिल्ली मांझि वाद जीते विद्यावर, साहि रीझि के कही करै दरसन अंतहपुर,
१. जैन सि० भा, भा०१ किरण ४ । २. मं० १४१६ चैत्र सुदि पचम्या मोमवासरे सकलराजशिरोमुकुटमाणिक्यमरीचि पिंजीकृत चरणकमल पादपीठस्य
श्रीपेरोजसाहेः सकल साम्राज्यधरीविनाणस्य समये श्री दिल्या श्रीकुदकु दाचार्यान्वये सरस्वती गच्छे बलात्कारगणे भ० श्रीरत्नकीतिदेवपट्टोदयाद्रि तरुणतरणित्वमुर्वीकुर्वाण भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रदेव तत्शिष्याणा ब्रह्म नाथगम इत्या गधना पंजिकाया ग्रन्थ आत्म पठनार्थ लिखापितम् । जैन साहित्य और इतिहास पृ०५१ दुसरी प्रशस्ति सं० १४१६ भादवा सुदी १३ गुरुवार के ग्नि की लिखी हुई द्रव्यसग्रह की है जो जयपुर के ठोलियो के मन्दिर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है । ग्रंथ सूची भा० २, पृ० १८० ।