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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास- भाग २
शामन किया। प्रस्तुत कामिगय पाण्ड्यबंग का भागिनेय (भानजा) था । और उसे राजेन्द्र प्रजित
लाया है। कवि ने नामिराय के वंश का विस्तृत परिचय दिया है। ये सभी राजा जैनधर्म के पालक थे।
इस ग्रथ का नाम शृगाराणंव चन्द्रिका और अलकार संग्रह है। ग्रन्थ में दश परिच्छेद है। १ वर्गगणफल निर्णय काव्यगत शब्दार्थ निश्चय ३ रस भाव निश्चय ४ नायक भेद निश्चय ५ दश गुणनिश्चय ६रीति निश्चय ७वत्ति निश्चय - शय्या पाक निश्चय : अलकार निर्णय १० दोष गुण निर्णय । इस ग्रन्थ की यह विशेषता है कि अलंकारों के सभी उदाहरण स्वय कवि द्वारा निर्मित है। इस ग्रन्थ का निर्माण कवि ने सन् १२५० के लगभग किया है । अतः कवि का समय तेरहवी शताब्दी है। ग्रन्थ डा. कुलकर्णी द्वारा सम्पादित होकर भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो हो चुका है।
कवि वाग्भट वाग्भट नाम के अनेक विद्वान हुए है। उनमें अष्टाङ्ग हृदय नामक वेद्यक ग्रन्थ के कर्ता वाग्भट सिंहगुप्त के पूत्र और सिन्ध देश के निवामी थे । दूसरे वाग्भट नेमि निर्वाणकाव्य के कर्ता है, जो प्राग्वाट या पोरवाड़ वश के भपण तथा छाहड के पुत्र थ । तोसरे वाग्भट सोमश्रेप्ठी के पुत्र थे, वाग्भट्रालकार के कर्ता और गुजरात के सालकी राजा सिद्धराज जयर्यासह के महामात्य थे । ओर यह वि० स० ११७६ म मौजूद थे । वि. स. ११७८ में मुनिचन्द्र सूरि का समाधिमरण हुआ । वाग्भट ने धवल और ऊचा जेनन्दिर बनवाया था उसके एक वर्ष बाद देवसुार द्वारा वधमान का मूति की प्रतिष्ठा कराई थी। यह श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विद्वान थ' ।
चार्थ वाग्भट इन सबसे भिन्न थे, ओर महाकवि वाग्भट नाम से प्रसिद्ध थे। इनके पितामह का नाम 'मक्कलप' पितामही का नाम महादेवी था ओर पिता का नाम नमिकुमार था। मक्कलप क दो पुत्र थे राहड और नेमिकुमार । उनमें राहड ज्येप्ट और नेमिकुमार लघुपुत्र थे जो बड़े विद्वान धर्मात्मा और यशस्वो थे । और अपने ज्येप्ठ भ्राता राहड के परम भक्त थे। मेवाड़ देश में प्रतिष्ठित भगवान पार्श्वनाथ जिनके यात्रा महोत्सव से उनका अदभत यश अखिलविश्व में विस्तृत हो गया था। नेमिकुमार ने राह पुर में भगवान नेमिनाथ का और नलोटक पुर में वाईस देवकूलकायो सहित भगवान आदिनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया था। राहड ने उसी नगर में आदि नाथ मन्दिर की दक्षिण दिशा में २२ जिनमदिर बनवाए थे। जिससे उसका यशरूपी चन्द्रमा जगत में पूर्ण हो गया था-व्याप्त हो गया था।
१. तस्य श्रीपाण्यङ्गम्य भागिनयो गुणवः । विट्ट नाम्बा महादेवी पुत्री राजेन्द्रपूजितः ।।१-१६ २. देग्यो, शृगाराएंव चन्द्रिका के ११ मे १८ तक के पद्य । ३. यज्जन्मन: सुकृतिन. पलु मिन्धु दंगे य. पुत्रवन्नमकरोद् भुवि मिह गुप्तम् । तेनोक्तमतदभयज्ञ भिपग्वरेण म्थान ममाप्नमिनि------॥१
-पद्यराज पुस्तकालय की अप्टाग हृदय की कन्नड़ी प्रति ४. अहिच्छत्र पुरोत्पन्न-प्राग्वाट कुलशालिन. ।
छाहडम्य सुतश्चक्रे प्रबन्ध वाग्भट कविः ॥८७ -नेमिनिर्वाण काव्य ५ सिरि वाहत्ति तनओ आमि वुहो तम्स सोमस्म' ! वाग्भटालकार शतकादशक साप्ट सप्ततो विक्रमानः । वत्मगणा व्यतिक्रान्ते श्री मुनिचन्द्र सूरयः । आगधनाविधि श्रेष्ठ कृत्वा प्रायोपवेशन । शमपीयूप कल्लोलप्लुतास्ते त्रिदिव ययु. ।। वत्सरे तत्र चकन पूर्ण श्री देवसूरिभिः । श्री वीरस्य प्रतिष्ठा मबाहटकारयन्मुदा युग्मम् ।। -प्रभावकचरित ६. राहडपुर मेवाड़ देश में कही था जो नमिकुमार के ज्येप्ठ भ्राता गहड द्वारा वसाया गया था
-काव्यानुशासन की उत्थानिका ७. नाभय चन्य सदन दिगि दक्षिण स्या, द्वाविंशति विदधता जिनमन्दिराणि । मन्ये निग्रजवर प्रभुराहडग्य, पूर्णी में जगति येन यशः शशाङ्कः ॥ -काव्यानुशासन पृ० ३४