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ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य
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यह स्वरूप सम्बोधन का पद्य है।
इनकी दो कृतियां कही जाती हैं—एक स्वरूप सम्बोधन और दूसरा 'प्रमाण निर्णय' । स्वरूप सम्बोधन के कर्ता उक्त महासेन हैं । इनमें स्वरूप सम्बोधन २५ श्लोकात्मक एक छोटी सी महत्त्वपूर्ण कृति है । उस पर केशवाचार्य और शुभचन्द्र ने वत्तियाँ लिखी हैं। प्रमाण निर्णय ग्रन्थ मेरे अवलोकन में नही पाया। संभवत: वह अप्रकाशित दशा में किसी ग्रन्थ भंडार में होगा।
नियमसार वत्ति के कर्ता पद्मप्रभ मलधारि देव का स्वर्गवास शक सं० ११०७ सन् ११८५ ईसवी में हुप्रा था, यह सुनिश्चित है । अतः महासेन पण्डितदेव का समय सन् ११८५ ई० से पूर्ववर्ती है । अर्थात् वे ईसा की १२वीं शताब्दी के मध्य काल के विद्वान जान पड़ते हैं।
प्रभाचन्द्र प्रस्तुत प्रभाचन्द्र सूरस्थगण के विद्वान थे। ये अनन्तवीर्य के प्रशिष्य और बालचन्द्र मुनि के शिष्य थे। अनन्तवीर्य की स्तुति कम्बदहल्लि के शिलालेख में की गई है । यह शिलालेख शक मं० १०४० (मन् १११८) वि० सं० ११७५ का है । अतएव इन प्रभाचन्द्र का समय विक्रम की १२वी शताब्दी है।
(जैन लेख मं० भा० २ पृ०३६६)
प्रमाचन्द्र ये मूलसंघ, पुस्तकगच्छ देशियगण के प्रसिद्ध तार्किक विद्वान मेघचन्द्र विद्यदेव के प्रधान शिप्य थे । इन मेघचन्द्र विद्य का स्वर्गवास शक वर्ष नेय मन्मथ सवत्सरद १०३७ सन् १११५ मगशिर सुदि १४ वृहस्पतिवार को हुआ था। यह मेघचन्द्र सकल चन्द्रमुनि के शिष्य थे। इन मेघचन्द्र के दूसरे शिष्य वीरनन्दी थे। प्रस्तुत प्रभाचन्द्र विष्णु वद्धन राजा की पटरानी धर्मपरायणा, पतिव्रता, सतीसाध्वी, जो भक्ति में रुक्मणि सत्यभामा तथा सीता जैसी देवियों के समान थी, के गुरु थे।
शक सं० १०६८ (सन् ११४६) वि० सं० १२०३ में आसोज सुदि १०मी वृहस्पतिवार को जिनके स्वर्गारोहण का उल्लेख श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं०५० में पाया जाता है । इन प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव ने अपने गुरु की निषद्या महाप्रधान दण्डनायक गंगराज द्वारा निर्माण कराई थी।
मेघचन्द्र के शिष्य इन प्रभाचन्द्र ने शक सं० १०४१ (सन् १११६ ई०) में एक महापूजा प्रतिष्ठा कराई थी। इससे इन प्रभाचन्द्र का समय विक्रम की १२वीं शताब्दी है।
प्रभाचन्द्र विद्य यह मड़पगण के सूर्य, समस्त शास्त्रों के पारगामी, परवादिगज मृगराज और मंत्रवादि मकरध्वज प्रादि विशेषणों से युक्त थे और वीरपुर तीर्थ के अधिपति मुनि रामचन्द्र विद्य के शिष्य थे । नय-प्रमाण में निपुण एवं
१. एनाल्म ऑफ दि भाण्डारकर ओरियन्टल इन्स्टिचूट भा० १३
पृ०८८ में डॉ. ए. एन. उपाध्ये का लेख । २. श्री मूलसङ्ग कृत-पुस्तक गच्छ देशीयोद्यद्गणाधिप सुताकिक चक्रवर्ती ।। सैद्धान्तिकेश्वरशिखामणिमेघचन्द्र-स्त्रविद्यदेव इति सद्विबुधाः स्तुवन्ति ।
जैन लेख सं० भा. १ पृ० ७५ ३. जैन लेख सं० भा० १ लेख नं० ५० (१४०) पृ०७१ ४. जैन लेख सं० भा० ११०६४ ५. जैन साहित्य और इतिहास पृ. ३२